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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लोक-प्रशासन के कुशल व प्रभावी होने के लिये उसमें सिविल-सेवा मूल्यों और नैतिकता की उपस्थिति होना अपरिहार्य होता है। किसी देश के लोक-प्रशासन में ‘नैतिकता’ की सुनिश्चितता/अनुपस्थिति को निर्धारित करने वालो कारकों का उल्लेख करें।

    07 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    लोक-प्रशासन में नैतिकता की सुनिश्चितता/अनुपस्थिति विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जैसे-एतिहासिक, सामाजिक, विधिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं न्यायिक कारक।

    • ऐतिहासिक कारकों को यदि भारत के संदर्भ में देखें तो कौटिल्य के अर्थशास्त्र, दिल्ली सल्तनत और मुगल काल की नैतिक-अनैतिक गतिविधियों में खोजा जा सकता है, जहाँ एक ओर भ्रष्टाचार, अनैतिक कार्यप्रणाली, छलकपट, नज़राना और बख्शीश जैसी मूल्यविहीन स्थितियाँ प्रचलित थीं, वहीं दूसरी तरफ विभिन्न प्रशासकों के द्वारा बेहतर प्रशासन के लिये उत्तम प्रशासनिक तंत्र विकसित किये गए।
    • सामाजिक पद, प्रतिष्ठा, सम्मान और समाज में सापेक्षिक वंचनों से बचने की प्रवृत्ति वह सामाजिक निर्धारक हैं जो आज लोक प्रशासन में सिविल सेवा मूल्यों को प्रभावित करती हैं। भ्रष्टाचार अथवा अनैतिक तरीकों से धन कमाने को सामाजिक स्वीकृति मिली है और प्रशासन में साध्य-साधन की पवित्रता का ध्यान नहीं रखा जाता।
    • यदि कानूनी निर्धारक कारकों को देखें तो स्पष्ट होता है कि यदि देश का न्यायिक तंत्र शीघ्र तथा सुस्पष्ट न्याय प्रदान करता है तो प्रशासन में नैतिकता की स्थिति मजबूत होती है। अनैतिक कार्य करने वालों अथवा भ्रष्टाचारियों को उचित तरीके से दंड मिलने से प्रशासन में मूल्य व नैतिकता को बढ़ावा मिलता है।
    • राजनीतिक तंत्र प्रशासनिक तंत्र को निर्देशित करता है और इस रूप में लोक प्रशासन में नैतिक मूल्यों को प्रभावित भी करता है। विभिन्न राजनीतिक तंत्रों (प्रजातंत्र, राजतंत्र, तानाशाही, केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत शासन) की अपनी विशेषताएँ हैं और ये प्रशासन में अपने अपने तंत्र के अनुकूल मूल्यों का विकास भी करते हैं। प्रजातंत्र में समानता व बंधुत्व जैसे मूल्य प्रमुख होते हैं तो राजतंत्र व तानाशाही में आज्ञाकारिता पर अधिक बल दिया जाता है।
    • अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में जहाँ संसाधनों के लिये तीव्र प्रतिस्पर्द्धा होती है और आर्थिक असमानता व्याप्त होती है वहाँ लोगों के लिये नैतिक रहना बहुत आसान नहीं होता। ऐसे में प्रशासन को भी अनैतिक होने के पर्याप्त अवसर मिलते हैं।

    वर्तमान में नैतिकता और मूल्यों को लोक प्रशासन का अभिन्न अंग माना जाता है। समानता, न्याय, मानवाधिकार, ईमानदारी, उत्तरदायित्व जैसे मूल्य लोक-प्रशासन से जुड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में लोक-प्रशासकों का यह दायित्व भी अत्यधिक बढ़ गया है कि वे प्रशासन में मूल्यों का संरक्षण करते रहें। 

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