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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6A के प्रावधान ‘पूर्व अनुमोदन (Previous Approval)’ को लोक सेवकों के सदंर्भ में स्पष्ट करते हुए वर्तमान समय में इसके औचित्य का विश्लेषण करें।

    10 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6A के अंतर्गत यह प्रावधान है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन उल्लेखित अपराध की जाँच केंद्र सरकार के ‘पूर्व अनुमोदन’ के बिना नहीं की जाएगी, जहाँ ऐसा अपराध निम्नलिखित से संबंधित हो-

    • केंद्रीय सरकार के संयुक्त सचिव उसके ऊपर के स्तर के कर्मचारी, और
    • ऐसे अधिकारी, जो केंद्र सरकार द्वारा किसी केंद्रीय अधिनियम के अंतर्गत सरकारी कंपनियों, सोसायटियों अथवा सरकार के स्थानीय प्राधिकरणों में नियुक्त किए जाते हैं।

    इस ‘पूर्व अनुमोदन’ के प्रावधान के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि संयुक्त सचिव और उसके ऊपर के अधिकारियों की सरकार में निर्णय लेने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इन निर्णयों को लेते समय अथवा सरकार को परामर्श देते समय उन पर किसी प्रकार दबाव नहीं होना चाहिए। उन अधिकारियों से बार-बार पूछताछ करने एवं जाँच का दबाव बनाने से उनके मनोबल पर प्रभाव पड़ सकता है। तथा, वे अपने आपकी बचाने में ही समय व्यय कर देंगे एवं जनहित में पूर्ण निष्ठा से काम नहीं कर पाएँगे।

    किंतु, इसके विपरीत भी सशक्त तर्क दिया जाता है। वर्तमान में लोक सेवाओं में भ्रष्टाचार व्याप्त है एवं संपूर्ण कार्य-संस्कृति में ऐसा वातावरण बना हुआ है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। ऐसी स्थिति में ‘पूर्व अनुमोदन’ के प्रावधान का भ्रष्ट वरिष्ठ लोक सेवकों द्वारा दुरूपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार इन लोक सेवकों के विरुद्ध जाँच प्रक्रिया आरंभ नहीं की जा सकती अथवा प्रारंभ करने में विलंब हो सकता है, जो अंततः भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा।

    इस प्रकार, एक उचित संतुलन कायम करना आवश्यक है। ताकि एक तरफ तो निष्ठावान सिविल सेवकों को अनुचित उत्पीड़न से बचाया जा सके तो दूसरी तरफ यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भ्रष्ट सिविल सेवक इसका आश्रय लेकर बच न पाएँ।

    अतः यह उपयुक्त होगा कि केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त द्वारा संबंधित सरकार के सचिव से परामर्श करके आरोपी सेवक के विरूद्ध जाँच प्रारंभ की अनुमति प्रदान की जाए। यदि सचिव ही भ्रष्टाचार में संलिप्त हो तो केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और मंत्रिमंडल सचिव की एक समिति द्वारा अनुमति प्रदान की जाए एवं यदि मंत्रिमंडल सचिव के विरूद्ध मामला हो तो यह स्वीकृति प्रधानमंत्री द्वारा प्रदान की जाए।

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