‘सूचना के अधिकार’ कानून के इस दौर में क्या सरकारी गोपनीयता अधिनियम की अभी भी कोई प्रासांगिकता है?
13 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नवर्ष 2005 में पारित ‘सूचना के अधिकार अधिनियम’ की प्रस्तावना में इसे लागू करने के निम्नलिखित कारण दिये गए थे-
‘सूचना के अधिकार’ से सुसज्जित अनेक कार्यकर्त्ता समय-समय पर सरकारी गोपनीयता अधिनियम (The Offical Secrets Act) को समाप्त करने या उसमें भारी बदलाव की मांग करते रहे हैं क्योंकि ‘सूचना की पारदर्शिता’ और ‘सूचना की गोपनीयता’ परस्पर विरोधाभासी हैं। RTI कार्यकर्त्ता सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा-8 को भी खत्म करने की लगातार मांग करते रहते हैं क्योंकि यह धारा सरकार को कुछ विशेष श्रेणी की सूचनाओं को गोपनीय रखने की इजाजत देती है।
सन् 2006 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सरकारी गोपनीयता अधिनियम को निरस्त करने तथा जासूसी से निपटने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में एक नया अध्याय जोड़ने की सिफारिश की थी। ये सिफारिशें जब मंत्रियों के एक समूह, जिसके अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी थे, के पास गई तो समूह ने अनेक सिफारिशों को स्वीकार किया, किंतु सरकारी गोपनीयता अधिनियम को निरस्त करने के सुझाव को अस्वीकार कर दिया था। वर्तमान की एन.डी.ए. सरकार ने सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के आलोक में सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 के प्रावधानों को देखने के लिये एल.सी.गोयल समिति की स्थापना की है।
अतः निश्चित तौर पर ‘पारदर्शिता’ के युग में ‘सरकारी गोपनीयता’ के लगभग एक शताब्दी पुराने अधिनियम में संशोधन की अहम आवश्यकता है। लेकिन ‘पारदर्शिता’ के आदर्श को लागू किये जाने के साथ-साथ देश की सुरक्षा और वृहत लोकहित को सदैव ध्यान में रखा जाना भी बहुत आवश्यक है।