सूचना और उपभोक्तावाद के इस युग में मीडिया द्वारा चित्रित महिलाओं की छवि, उनके प्रति हमारे ‘सामाजिक अभिवृत्ति’ को गहरे तौर पर प्रभावित करती है। चर्चा करें।
22 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नहमारी सामाजिक अभिवृत्ति के निर्माण में हमारी संस्कृति, परंपरा, संस्कार, पारिवारिक माहौल के साथ-साथ वर्तमान समय की घटनाएँ, उनका चित्रण एवं विश्लेषण का तरीका इत्यादि सभी का महत्त्व होता है।
सूचना क्रांति के इस दौर में अन्य कारकों की अपेक्षा मीडिया का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। हमारे कपड़े, खाना-पीना, सोचने का तरीका इत्यादि सभी इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित होने लगे हैं। अतः महिलाओं के कई अलग-अलग चित्रण, जो एक-दूसरे के विपरीत भी होते हैं, से भी समाज का महिलाओं के प्रति नज़रिया बदला है।
इस चित्रण की एक सकारात्मक धारा भी है जो महिलाओं को सशक्त, प्रगतिशील, कर्मयोगी तथा मज़बूत दिखाती है। इससे समाज में बेटियों के प्रति सम्मान का भाव और भी बढ़ जाता है।
गीता फोगाट, सानिया मिर्जा, पी.वी.सिंधू, साक्षी मलिक जैसी बहादुर बेटियों को मीडिया में उनके कार्य के कारण खास तवज्जों मिलने से अन्य लड़कियों का भी आत्मविश्वास बढ़ता है।
फिल्म अभिनेत्रियों के कार्य तथा उनके कुछ कथन भी समाज को एक अलग नज़रिया देते हैं, जिसमें वे अपने शरीर और आत्मा पर सिर्फ और सिर्फ अपनी सत्ता स्वीकार करती है। ‘माई बॉडी माई च्वाईस’ जैसे कथन उनके इसी आत्मविश्वास को प्रदर्शित करते हैं।
लेकिन इस छवि चित्रण के कुछ स्याह पक्ष भी हैं जिसमें महिलाओं को ‘कामोडिटी’ की तरह प्रयोग किया जाता है और किसी उत्पाद की तरह ही बाजार में उनकी सुंदरता एवं शारीरिक गठन का प्रदर्शन किया जाता है, जो व्यक्ति के तौर पर और एक वर्ग के तौर पर भी उनकी गरिमा का हनन है। और इसी का परिणाम होता है कि आम आदमी भी महिलाओं को कभी-कभी कमोडिटी की तरह देखने लगता है।
स्पष्ट है सूचना क्रांति और उपभोक्तावाद के दौर ने महिलाओं की मिश्रित छवि प्रस्तुत कर हमारी अभिवृत्ति को भी वैसा ही रूप प्रदान किया है। अच्छी बात यह है कि नकारात्मक छवि-चित्रण अब कम हो रहे हैं और उनके मज़बूत पक्षों को ज़्यादा उभारा जा रहा है ,जैसे उनकी ममता, सहिष्णुता, परिवार के प्रति उनका समर्पण, तनाव झेलने की उनकी क्षमता इत्यादि, न कि अपनी गोरी एवं छरहरी काया या उनके कपड़े।