सोशल मीडिया और सूचनाधिक्य के इस दौर में बच्चों में मूल्यरोपण कराने में परिवार की क्या भूमिका हो सकती है? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर :
सोशल मीडिया के इस युग में सूचनाओं की भरमार है, परंतु सोशल मीडिया एक खुली हुई दुनिया है। यहाँ चलने वाली अपुष्ट, फर्ज़ी और भ्रामक खबरें, बाल-मन को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। ऐसे में बच्चों के मन में मूल्यों को विनिर्विष्ट करवाना परिवार के लिये निश्चित तौर पर चुनौतीपूर्ण है। मूल्यरोपण में परिवार की भूमिका को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं –
- बच्चों के निकटतम निरीक्षक के रूप में परिवार उनके व्यवहार पर तात्कालिक प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं और वे ज़रूरी सुधार कर सकते हैं। उदाहरण के लिये ब्रिटेन की सरकार ने माता-पिता से बच्चों के व्यवहार पर नज़र रखने के लिये कहा है।
- बच्चों द्वारा किये गए अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित कर, परिवार उस व्यवहार को आदत में बदलवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- सोशल मीडिया पर बढ़ रहे धार्मिक उन्माद, नकली खबरें तथा प्रचार के कारण बच्चों के धार्मिक रूप से कट्टर हो जाने का डर है। ऐसे में परिवार ही बच्चों को इस विविध और गतिशील दुनिया में उचित-अनुचित की पहचान कराने में मदद कर सकता है।
- परिवार, बच्चों द्वारा इंटरनेट के इस्तेमाल पर निगरानी रख उन्हें केवल उनके ही काम की सामग्री ढूंढने के लिये मदद कर सकता है जैसे- किताबें, विज्ञान, भूगोल या इतिहास से संबंधित वीडियो आदि।
- अपने पारिवारिक और सामाजिक रीति रिवाज़ों के ज़रिये परिवार ही बच्चों को सहिष्णुता और बंधुत्व का गुण सिखा सकता है।
- इंटरनेट पर ट्रोलिंग, मज़ाक बनाना, अभद्र और आक्रामक भाषा का प्रयोग कर की जाने वाली शाब्दिक हिंसा आज आम बात है। यदि बच्चा इनसे प्रभावित है तो परिवार ही उसे मानसिक संबल प्रदान कर उस स्थिति से उबार सकता है। और यदि बच्चा स्वयं इन सब में लिप्त है तो परिवार ही समझाइश या डांट-फटकार से उसे इन सब कामों के प्रति हतोत्साहित कर सकता है।
- आज इंटरनेट पर महिलाओं के प्रति हिंसा दिखाने वाली तमाम सामग्री मौजूद है। ऐसे में बच्चों को महिलाओं के प्रति सम्मान और महिला-पुरुष बराबरी की भावना का विकास केवल परिवार के माहौल में सिखाया जा सकता है।
कहा जाता है कि सूचना दोधारी तलवार की तरह है। एक ओर इसका उपयोग भ्रम और कट्टरता फैलाने में भी किया जा सकता है, तो दूसरी ओर रचनात्मक कार्यों में भी किया जा सकता है। इन्हीं बातों में अंतर करना सिखाने में और बच्चे के सामाजीकरण तथा उसमें मूल्यरोपण की पहली संस्था के रूप में परिवार की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।