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प्रश्न :
भोजन अथवा खाद्य पदार्थों की बर्बादी कौन-सी नैतिक समस्याओं को जन्म देती है ? भारत के लिये यह कितना गंभीर मुद्दा है? चर्चा करें।
30 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- भोजन का महत्त्व और विश्व में भुखमरी की स्थिति।
- भोजन की बर्बादी से जुड़ी नैतिक समस्याएँ।
- भारत में भोजन की बर्बादी और भुखमरी का संक्षिप्त विवरण।
- निष्कर्ष।
भोजन, वस्त्र और आवास मानवीय अस्तित्व के लिये तीन न्यूनतम आवश्यकताएँ हैं। इन तीनों में से किसी एक का भी अभाव मानव जीवन को दुष्कर कर देता है। लेकिन इन तीनों में से भी भोजन के अभाव का मुद्दा सबसे ज़्यादा गंभीर है। विश्व में प्रतिवर्ष जितना भोजन पैदा किया किया जाता है, उसका एक-तिहाई बर्बाद कर दिया जाता है। भोजन की इस मात्रा से दो अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है। यह एक विडंबना है कि एक तरफ विश्व में करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हैं, वहीं रोज़ाना लाखों टन खाद्य पदार्थ बर्बाद कर दिया जाता है।
भोजन की बर्बादी से जुड़ी नैतिक समस्याएँ-
- खाद्य पदार्थों की बर्बादी, मानव अस्तित्व के लिये ज़रूरी हक “भोजन के अधिकार” का उल्लंघन है। भोजन की बर्बादी विश्व के करोड़ों लोगों की सामाजिक सुरक्षा की उपेक्षा करती है।
- भोजन की बर्बादी दुनिया के करोड़ों बच्चों के कुपोषण के लिये भी ज़िम्मेदार है। पोषण के अधिकार का बाधित होना, बच्चों के शिक्षा और आगे चलकर आजीविका के अधिकार को भी बाधित करता है।
- खाद्य पदार्थों की बर्बादी संसाधनों के दुरुपयोग की ओर इंगित करती है। धन के साथ-साथ अनाज, जल, खाद्योत्पादन में लगी ऊर्जा आदि का दुरुपयोग भी इसी में निहित है।
- विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में खाद्य अपव्यय का अध्ययन पर्यावरणीय दृष्टिकोण से करते हुए बताया गया है कि भोजन के अपव्यय से जल, ज़मीन और जलवायु के साथ-साथ जैव विविधता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। सड़ा हुआ भोजन मीथेन गैस उत्पन्न करता है, जो कि प्रमुख प्रदूषणकारी गैस है।
- भुखमरी के कारण समुदायों का पलायन उन इलाकों की ओर होता है जहाँ इनकी प्रचुरता है। अत्यधिक पलायन समुदायों में संघर्ष और सामाजिक असंतुलन पैदा कर देता है।
भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2016(Global Hunger Index) में भारत 118 देशों की सूची में 97वें स्थान पर है। भारत में रोज़ लगभग 19 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं। भारत में शादी-समारोहों, दावतों और होटलों में खाने की बर्बादी एक आम बात है। कोल्ड स्टोरेज की कमी, परिवहन और वितरण के उचित संसाधनों की कमी के चलते भी भारत में खाद्य पदार्थों की एक बड़ी मात्रा उपभोग के लायक नहीं रह जाती है। इस अपव्यय का दुष्प्रभाव हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ रहा है। हमारा देश पानी की कमी से जूझ रहा है और अपव्यय किये जाने वाले इस भोजन को पैदा करने में बड़ी मात्रा में पानी व्यर्थ चला जाता है।
हालाँकि भोजन की बर्बादी को लेकर कुछ सकारात्मक कदम उठाए गए हैं, जैसे-जम्मू कश्मीर सरकार ने शादियों और समारोहों में होने वाली भोजन की बर्बादी के विरुद्ध एक कानून बनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में भोजन के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है। प्रधानमंत्री ने भी “मन की बात” कार्यक्रम में भारत में होने वाली भोजन की बर्बादी पर चिंता व्यक्त की है। कुछ स्वयं सेवी संगठन भी व्यर्थ जाने भोजन को इकट्ठा कर ज़रूरतमंदों तक पहुँचाने का काम कर रहे हैं। परंतु ये प्रयास काफी नहीं है। हमें भोजन की बर्बादी को रोकने के लिये व्यापक स्तर पर प्रयास करने होंगे। हमें ये याद रखना होगा कि भोजन की बर्बादी न केवल एक मानवीय त्रासदी है, बल्कि संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। यह मानव जाति के विरुद्ध एक अपराध है।
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