बंगाल का नील आंदोलन अपने समकालीन आंदोलनों में सर्वाधिक व्यापक और जुझारू आंदोलन के रूप में जाना जाता है। नील आंदोलन की उपलब्धियों के संदर्भ में चर्चा करें।
उत्तर :
भूमिका में :-
1857 के बाद के किसान आंदोलनों की संक्षिप्त चर्चा करते हुए बंगाल के नील आंदोलन के सामान्य परिचय के साथ उत्तर प्रारंभ करें।
विषय-वस्तु में :-
नील आंदोलन की पृष्ठभूमि पर चर्चा करें, जैसे :
- नील उत्पादकों द्वारा ज़बरन किसानों से नील की खेती कराना।
- नील की खेती के कारण किसानों को घाटा।
- नील उत्पादकों द्वारा कीमतों में धोखा कर किसानों से कम कीमत पर नील खरीदना।
- धोखे से करार करवाकर बिना पैसे दिये ही नील की खेती के लिये मजबूर करना।
- किसानों तथा उनके परिवार के साथ मारपीट तथा शोषण आदि।
नील आंदोलन के समकालीन पाबना विद्रोह और दक्कन उपद्रव की तुलनात्मक रूप से संक्षिप्त चर्चा करते हुए नील आंदोलन की सफलता पर चर्चा करें, जैसे :
- सितंबर 1858 में परेशान किसानों ने अपने खेतों में नील न उगाने का निर्णय लेकर बागान मालिकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
- विद्रोह की पहली घटना बंगाल के नादिया ज़िले में स्थित गोविन्दपुर गाँव में सितंबर 1859 में हुई। स्थानीय नेता दिगम्बर विश्वास और विष्णु विश्वास के नेतृत्व में किसानों ने नील की खेती बंद कर दी।
- उत्पादकों द्वारा ज़मीन छीन लेने और लगान बढ़ा देने की धमकी का भी किसानों पर कोई असर नहीं हुआ बल्कि उन्होंने लगान चुकाना ही बंद कर दिया।
- एक साल के भीतर यानी 1860 तक नील आंदोलन, बंगाल के नादिया, पाबना, खुलना, ढाका, मालदा, दीनाजपुर आदि क्षेत्रों में फैल गया।
- किसानों की एकजुटता, अनुशासन, संगठन और सहयोग ने बंगाल से नील कारखानों को हटा दिया।
- नील विद्रोह भारतीय किसानों का पहला सफल विद्रोह था, कालांतर में वह भारत के स्वाधीनता संघर्ष की सफलता में प्रेरक बना।
नील आंदोलन की सफलता के कारणों पर भी संक्षिप्त चर्चा करें, जैसे :
- आंदोलन के नेतृत्व और भागीदारी के सभी स्तरों पर हिंदू और मुस्लिम किसानों ने कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया।
- बंगाल के तत्कालीन बुद्धिजीवियों ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई और संघर्षरत किसानों के समर्थन में सशक्त अभियान चलाया।
अंत में प्रश्नानुसार संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष प्रस्तुत करें।
नोट : निर्धारित शब्द-सीमा में उत्तर को विश्लेषित करके लिखें।