मूल्यों के विकास में परिवार, समाज और शिक्षण संस्थाओं की क्या भूमिका होती है?
02 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर की रूपरेखा-
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मूल्य हमारे व्यवहार या नैतिक आचार संहिता का महत्त्वपूर्ण अवयव है। ये मूल्य ऐसे आदर्श या मानक होते हैं जो किसी समाज या संगठन या फिर व्यक्ति के लिये दिशानिर्देश के रूप में कार्य करते हैं। विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से विकसित ये मूल्य हमारे मन में गहराई तक बैठे होते हैं।
मूल्यों के विकास में परिवार की भूमिका-
मूल्यों के विकास में परिवार वह पहली सीढ़ी है जिस पर चढ़कर मानवीयता के लक्ष्य को पाना आसान लगता है। इसलिये परिवार कब, कैसे, कितना और किस प्रकार के मूल्यों को देना चाहता है, यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है। 6 वर्ष तक की आयु एक ऐसा पायदान है जब बच्चा दूसरों के आचरण से सबसे अधिक प्रभावित होता है, इसलिये प्राथमिक स्तर पर मूल्य इसी उम्र में निर्धारित होते हैं। हालाँकि बाद में भी मूल्य विकसित होते हैं, लेकिन प्रभाव का स्तर धीरे-धीरे कम हो जाता है।
प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, निंदा व दंड कुछ ऐसे उपकरण हैं, जिनसे ये मूल्य विकसित किये जा सकते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि परिवार एकल है या संयुक्त। संभव है एकल परिवार से वैयक्तिक होने का मूल्य प्राप्त हो और संयुक्त परिवार से साथ रहने का। परिवार का शैक्षणिक स्तर और आर्थिक स्तर भी मूल्यों की पृष्ठभूमि तय करने में सहायक होते हैं।
मूल्यों के विकास में समाज की भूमिका-
समाज की असली भूमिका वैसे तो विद्यालय जाने के साथ शुरू होती है किंतु उससे पूर्व 6 वर्ष तक समाज और परिवार मूल्य विकास में बराबर भागीदार होते हैं। आरंभ में मूल्यों का विकास कम होता है, लेकिन समाज से ज्यों-ज्यों संपर्क बढ़ता है, मूल्यों का विकास भी उत्तरोत्तर होता जाता है। मीडिया, सामाजिक समूहों से वार्तालाप,सह-शिक्षा विद्यालय(Co-education schools) आदि से समाज के नैतिक मानदंड,सामाजिक गतिशीलता, परिवर्तन जैसे विचारों का प्रभाव पड़ता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों के साथ संपर्क से धैर्य, सहिष्णुता जैसे मूल्यों को विकसित करना आसान होता है। ध्यातव्य है कि जो जितना सामाजिक होगा, उस पर समाज का उतना ही प्रभाव पड़ेगा।
मूल्यों के विकास में शिक्षण संस्थानों की भूमिका-
शिक्षण संस्थान दो स्तरों पर मूल्य विकास में योगदान देते हैं- आधारभूत शिक्षा के स्तर पर व उच्च शिक्षा के स्तर पर। आधारभूत मूल्यों का प्रभाव ज़्यादा होता है, जबकि उच्च शिक्षण संस्थान प्रायोगिक मूल्यों का विकास कर पाते हैं। व्यक्तित्व परिवर्तन की संभावना उच्च स्तर पर ज़्यादा होती है। विभिन्न विचारधाराओं के संपर्क में आने का क्रम भी उच्च शिक्षण संस्थानों से ही शुरू होता है। विभिन्न पाठ्यक्रमों द्वारा स्वतंत्रता, समानता, अहिंसा, नैतिक शिक्षा का प्रभाव भी मूल्य विकास में सहायक होता है। इस प्रक्रिया में अध्यापक और छात्र समूह भी अहम योगदान देते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि मूल्यों के विकास में परिवार, समाज और शिक्षा की बड़ी महती भूमिका होती है।