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प्रश्न :
अहिंसा की धारणा महावीर के दर्शन में है और गांधी के चिंतन में भी। दोनों की धारणाओं में अंतर स्पष्ट करते हुए बताइए कि आप स्वयं को किसके नज़दीक पाते हैं?
06 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- महावीर के अनुसार अहिंसा की अवधारणा स्पष्ट करें।
- गांधी के अनुसार अहिंसा की अवधारणा स्पष्ट करें।
- दोनों अवधारणाओं की तुलना करें।
- दोनों में से अपने विकल्प का चुनाव कर उत्तर का निष्कर्ष लिखें।
अहिंसा का मूल्य महावीर के दर्शन (जैन-दर्शन) और गांधी के चिंतन दोनों के केंद्र में है। अहिंसा का नकारात्मक अर्थ है- मन, कर्म, वचन से किसी को भी कष्ट न पहुँचाना। सकारात्मक अर्थ में अहिंसा के अंतर्गत सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, दया, सहानुभूति और सेवाभाव रखना शामिल है।
जैन धर्म में अहिंसा सभी कर्तव्यों से ऊँची है। अणुव्रत में कहा गया है कि खेती करते समय यदि पूरी सावधानी के बावज़ूद हिंसा हो जाए तो क्षम्य है। जान-बूझकर की गई अहिंसा अक्षम्य है। इसी आधार पर गर्भपात को अनैतिक माना गया है। जैन-दर्शन में अहिंसा से जुड़े कुछ अन्य नियम हैं-सूर्यास्त के बाद भोजन न करना, प्याज,लहसुन व ज़मीन के अंदर की अधिकांश सब्जियाँ, जैसे- आलू, मूली, गाज़र आदि न खाना, मुँह पर कपडा बाँधना ताकि बोलते समय साँस लेने में कोई जीव न मर जाए, पानी भी छान कर पीना आदि।
गांधी के अनुसार अहिंसा नैतिक जीवन जीने का मूलभूत तरीका है। यह सिर्फ आदर्श नहीं, बल्कि यह मानव जाति का प्राकृतिक नियम है। हिंसा से किसी समस्या का तात्कालिक और एकपक्षीय समाधान हो सकता है, किंतु स्थायी और सर्वस्वीकृत समाधान सिर्फ अहिंसा से ही संभव है। गांधी के अनुसार अहिंसा बहुत ऊँचे नैतिक व आध्यात्मिक बल पर टिकी होती है।
गांधी के चिंतन में अहिंसा की धारणा महावीर के दर्शन की तुलना में लचीली और व्यावहारिक है। उनके अनुसार हिंसक पशुओं, रोग के कीटाणुओं, फसलों के कीटों, असहनीय दर्द झेल रहे जीवों को मारने के लिये अहिंसा के नियम का उल्लंघन किया जाना उचित है। चिकित्सक द्वारा शल्य चिकित्सा के लिये की जाने वाली हिंसा उचित है, यदि वह केवल मरीज़ के हित में की जाए। गांधी के अनुसार यदि हिंसा और कायरता में से एक को चुनना हो तो हिंसा को चुनना उचित है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन दर्शन में अहिंसा का विचार महात्मा गांधी के अहिंसा संबंधी विचार की तुलना में कठोर है क्योंकि गांधी ने अहिंसा के अपवाद स्वीकार किये हैं, परंतु जैन-दर्शन प्रायः अहिंसा को निरपेक्ष रूप में लेता है। मैं अपने आप को गांधी के चिंतन में जो अहिंसा की अवधारणा है, उसके ज्यादा नजदीक पाता हूँ। हालांकि महावीर के दर्शन में भी अणुव्रतों के अंतर्गत अहिंसा के नियमों में ढील दी गई है, परंतु फिर भी वे नियम अपेक्षाकृत कठोर हैं। मेरी यही अवधारणा है कि अहिंसा की धारणा को अपवादों के साथ अपनाया जाना चाहिये।
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