आप के पड़ोस में एक व्यक्ति ओम प्रकाश रहता है। आप उसकी गतिविधियों को देखते हैं तो यह पाते हैं कि कुछ दिनों से वह अक्सर ही अपने 11 वर्षीय बेटे हर्ष से भारत में लोकतंत्र के बदले अधिनायकवादी व्यवस्था की स्थापना की वकालत करता रहता है। वह व्यक्ति कुछ धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को मिलने वाली विशेष सुविधाओं के भी विरोध में है। उसका मानना है कि वे लोग इस देश के निवासी नहीं हैं और उन्हें भारत में रहने का अधिकार नहीं है। उन्हें उनके अपने देशों में वापस भेज दिया जाना चाहिये ताकि भारत में शांति व्यवस्था कायम हो सके। उपर्युक्त परिस्थिति में हर्ष के पिताजी के दृष्टिकोण पर टिप्पणी कीजिये।
09 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नहर्ष के पिता का दृष्टिकोण अधिनायकवाद की अल्प समझ से ऊपजे कथित लाभों पर आधारित प्रतीत होता है। अस्वीकृति और निराशा के भाव से परिपूर्ण उनका यह दृष्टिकोण लोकतंत्र की बीमारियों जैसे- तुष्टिकरण की राजनीति, धीमी निर्णयन की प्रक्रिया, असहमतियों के संघर्ष और आज़ादी के 70 वर्षों के दौरान होने वाले अत्यल्प विकासात्मक गतिविधियों के कारण ही उनका दृष्टिकोण तानाशाही व्यवस्था की ओर झुका हुआ प्रतीत होता है। लेकिन ओम प्रकाश जी का यह झुकाव आइडिया ऑफ इंडिया की भावना के विपरीत है। साथ ही यह हमारे स्वतंत्रता सेनानियों व संविधान निर्माताओं के आदर्शों और विविधता भरे समाज से मेल नहीं खाता है। उल्लेखनीय है कि लोकतंत्र लोगों की सहमति और कानून के शासन के आधार पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता, विविधता के साथ नागरिक और व्यक्तिगत अधिकारों को बढ़ावा देता है जो किसी व्यक्ति को अधिकतम क्षमता के लिये आवश्यक है। इसके विपरीत अधिनायकवादी शासन प्रणाली में ये सुविधाएँ नहीं उपलब्ध होती हैं।
धार्मिक अल्पसंख्यकों को लेकर उनका विचार निश्चित ही व्याकुल करने वाला है और उनके द्वारा इन विचारों को अपने बेटे को प्रेषित करना भविष्य के लिये खतरनाक साबित हो सकता है। इस उम्र में बच्चे में इन भावनाओं को भरने से उसका दृष्टिकोण प्रभावित होगा और आगे चलकर वह सहिष्णुता, बंधुत्व और विविधता जैसे मूल्यों का सम्मान करने में खुद को असमर्थ पाएगा। इस संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एक व्यक्ति या परिवार के स्तर पर निहित यह भाव बताता है कि हम सामूहिक रूप से धार्मिक भेदभाव को दूर करने में असमर्थ रहे हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों को देश से बाहर करने और उसके बाद शांति स्थापना जैसे विचार इतिहास और भारत के ‘सर्वधर्म समभाव’ जैसे मूल्यों को लेकर उनकी अज्ञानता को उज़ागर करते हैं।
वस्तुतः भारत में विभिन्न धर्मों का सह-अस्तित्व कोई नई बात नहीं है, विविधता हमारी धरोहर के साथ प्राथमिक मूल्य के रूप में स्थापित है। अतः श्रीमान ओमप्रकाश से मुलाकात कर मैं यह बताना चाहूँगा कि भारत को दुनिया में एक सफल लोकतंत्र के रूप में शुमार किया जाता है। यद्यपि बदलते परिदृश्य के साथ इसमें सुधार की आवश्यकता है लेकिन लोकतंत्र के बदले तानाशाही व्यवस्था को अपनाना इसका समाधान नहीं है, बल्कि प्रगतिशील विचारों को अंगीकृत करने और समस्याओं को लेकर सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित करने से इसका