‘नैतिक चिंता’ और ‘नैतिक दुविधा’ में क्या अंतर है? सार्वजनिक तथा निजी संस्थाओं से जुड़ी कुछ नैतिक चिंताओं का उल्लेख करते हुए उनके समाधान के उपायों पर विचार कीजिये।
11 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर की रूपरेखा-
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नैतिक चिंता- ऐसा कोई कार्य या स्थिति जिसमें किसी नैतिक पक्ष का उल्लंघन हुआ हो या होने की संभावना हो, बेशक अभी तक कर्त्ता के मन में नैतिक दुविधा उत्पन्न न हुई हो या वह स्थिति उस कर्मचारी या संगठन के लिये कुछ लाभ ही क्यों न पैदा करती हो, नैतिक चिंता कहलाती है।
नैतिक दुविधा- सामान्यतः दुविधा उस स्थिति को कहते हैं जब किसी व्यक्ति के पास दो या अधिक विकल्प हों और विकल्प एक-दूसरे से पूर्णतः अलग हों अर्थात् उन्हें साथ-साथ न चुना जा सकता हो, परन्तु किसी एक विकल्प को चुनना अनिवार्य हो अर्थात् निर्णय को टाला न जा सकता हो और सारे विकल्प ऐसे हों कि किसी को भी चुनकर पूर्ण संतुष्टि मिलनी संभव न हो। सभी दुविधाएँ नैतिक दुविधाएँ नहीं होतीं। नैतिक दुविधा के विकल्पों में से कम-से-कम एक पक्ष नैतिकता से संबंधित होता है और ऐसा भी हो सकता है कि दोनों विकल्प अलग-अलग मूल्यों पर आधारित हों।
सार्वजनिक संस्थाओं से जुड़ी नैतिक चिंताएँ
निजी संस्थाओं से जुड़ी कुछ नैतिक चिंताएँ
नैतिक चिंताओं के समाधान के उपाय