उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- वर्तमान में विश्व की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों का संक्षिप्त विवरण दें।
- स्वामी विवेकानंद के विभिन्न मुद्दों पर विचारों को बिंदुवार लिखें।
- निष्कर्ष
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आज के मुक्त अर्थव्यवस्था वाले गतिशील विश्व में जहाँ सभी राष्ट्र विकास की दौड़ में एक-दूसरे से नैतिक-अनैतिक तरीकों से प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं, जहाँ समूचे वैश्विक समाज में नैतिक मानदंडों के पालन में ज़बरदस्त गिरावट देखने को मिल रही है, जहाँ प्रतिक्षण पूरी मानव जाति पर परमाणु युद्धों का खतरा बना हुआ है, जहाँ घोर असमानता और गरीबी व्याप्त है, जहाँ युवा पीढ़ी के पथभ्रष्ट होने के लक्षण दिखाई दे रहे हों, ऐसे विश्व में स्वामी विवेकानंद के विचारों के औचित्य की पड़ताल हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से कर सकते हैं-
- विश्व बंधुत्त्व- शिकागो की धर्म सभा में स्वामी जी ने कहा था कि जैसे विभिन्न धाराएँ, विभिन्न दिशाओं से बहते हुए आकर एक ही समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही मनुष्य जो मार्ग चुनता है, चाहे वे अलग-अलग प्रतीत होते हों, सभी एक ही सर्वशक्तिमान ईश्वर की ओर ले जाते हैं। “वसुधैव कुटुंबकम” का संदेश देते हुए वे सारे विश्व को एक परिवार मानने की शिक्षा देते हैं।
- युवाओं के लिये – युवाओं के लिये उनका सर्वाधिक प्रभावी कथन है कि-“ उठो, जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको।” वे चाहते थे कि युवा आत्मविश्वास से भरे हों। जीवन की बाधाओं से लड़ने के लिये आज युवाओं को स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
- परोपकार- जहाँ आज सारा समाज धन-वैभव के पीछे भाग रहा है, वहाँ धन के उचित उपयोग पर स्वामी जी का विचार है कि-“अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा यह सिर्फ बुराई का एक ढेर है।”
- शिक्षा- स्वामी जी का विचार था कि भारत की समस्त समस्याओं का मूल कारण अशिक्षा है। उनका विचार था कि शिक्षा को उच्च वर्ग के एकाधिकार से मुक्त कराकर उसे समाज के प्रत्येक हिस्से तक पहुँचाया जाना चाहिये। भारत के लिये उचित शिक्षा प्रणाली पर भी उनका एक दृष्टिकोण था। वे मात्र करियर निर्माण पर आधारित शिक्षा की बजाय आत्मविश्वास में वृद्धि करने वाली और चरित्र का निर्माण करने वाली सच्ची शिक्षा के पक्षधर थे।
- वंचित वर्गों पर – स्वामी जी का विचार था कि हम वेदांत पर चर्चा करने को तो तैयार है, परंतु वंचित-दलित वर्ग के बारे में विचार करने को भी तैयार नहीं हैं। हमें न सिर्फ दलितों का आत्मसम्मान लौटाना चाहिये, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के लिये सहायता करनी चाहिये।
- महिल मुक्ति- स्वामी जी का विचार था कि महिलाओं को उनके निर्णय स्वयं लेने की अनुमति दी जाए। वे नारी-शिक्षा पर ज़ोर देते थे और उनको यह विश्वास था कि शिक्षित नारी ही सारे समाज का कल्याण कर सकती है। वे महिलाओं को आत्मरक्षा के तरीके सिखाने पर भी ज़ोर दिया करते थे।
- प्रेम – स्वामी जी के अनुसार –“प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है इसलिये प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है, वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिये प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है।
अतः स्पष्ट है कि युवाओं, महिलाओं, समाज और संस्कृति, राष्ट्रों तथा पूरे विश्व के कल्याण के लिये स्वामी विवेकानंद के विचार वर्तमान में तो प्रासंगिक है ही, अपने कालजयी स्वरूप में ये विचार अगली कई सदियों तक मानव जाति को सन्मार्ग दिखाते रहेंगे।