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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित हुए एक दशक से भी अधिक समय बीत गया है, किंतु इसके अप्रभावी क्रियान्वयन के कारण पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता खतरे में हैं।” मूल्यांकन करें।

    27 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • सूचना के अधिकार का संक्षिप्त परिचय दें।
    • इसमें निहित समस्याओं का उल्लेख करें।
    • निष्कर्ष

    सूचना का अधिकार अधिनियम,२००५ लागू हुए १० वर्ष पूरे हो चुके हैं। एक दृष्टि से इस अधिनियम को क्रांतिकारी अधिनियम कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें नागरिकों को लोक प्राधिकारियों के कार्यों के बारे में जानने के व्यापक अधिकार दिये गए हैं तथा लोक प्राधिकारियों के क्रिया-कलापों में पारदर्शिता के कई प्रावधान रखे गए हैं। 
    इस कानून के सहयोग से सूचना प्राप्त कर भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए हैं। इसके दायरे में सभी सरकारी विभागों के साथ गैर-सरकारी संगठन आदि को भी लाया गया। बावजूद इसके इस कानून के समक्ष कई समस्याएँ हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

    • व्यापक प्रचार के अभाव में आज भी इस कानून की जानकारी बहुत कम लोगों के पास है। सूचना के अधिकार का प्रचार-प्रसार स्वयंसेवी संस्थाओं या फिर कुछ कार्यकर्त्ताओं द्वारा ही किया जा रहा है। सरकार इस अधिकार के प्रचार-प्रसार में कोई रुचि नहीं ले रही है।
    • सूचना आयोग में भी अदालतों की तरह लंबित मामलों का ढेर लगा हुआ है। इस विभाग में भी मानव संसाधन की कमी एक बड़ी समस्या है।
    • केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों के सूचना आयुक्तों को भी अर्द्ध न्यायिक तरीके से द्वितीय अपील एवं शिकायतों का निपटारा करना होता है। इन सभी में से कई अधिकारी ऐसे हैं, जिन्हें न्यायिक पृष्ठभूमि नहीं होने के कारण, न्याय दृष्टान्तों को समझने या सही ढंग से उनका निर्वचन करने में कठिनाई आ रही है,जिसके कारण उनसे त्रुटियाँ होना संभावित है।
    • इस कानून का दुरूपयोग भी हो रहा है। कुछ लोग सरकारी पदाधिकारी या किसी अन्य को ब्लेकमेल करने के उद्देश्य से इस कानून का उपयोग कर रहे हैं।
    • सूचना अधिकारी द्वारा तय समय-सीमा में अगर सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो आयोग द्वारा ज़िम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है, लेकिन ऐसे बहुत कम मामलो में जुर्माना लगाया जाता है, जिसके कारण कार्यालयों में सूचना देने में टालमटोल का रवैया अपनाया जाता है।
    • इस कानून की धारा 4 के तहत कुछ सूचनाएँ सभी विभागों को स्वयं सार्वजनिक कर देनी चाहिये, ताकि आम लोगों को आवेदन देने की ज़रूरत ना पड़े, लेकिन इसका भी पालन अधिकतर विभागों द्वारा नहीं किया जा रहा है।
    • न्यायपालिका और राजनीतिक दलों का इस कानून के दायरे से बाहर होना इसके औचित्य पर ही प्रश्न चिह्न खड़े करता है, क्योंकि आज इन दोनों से जुड़ा भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। 


    उपरोक्त खामियों के बावज़ूद यह कहा जा सकता है कि सही मायने में सूचना के अधिकार ने प्रशासन में लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित किया है। यह लोकतंत्र को मज़बूत करने वाला एक प्रभावी उपकरण है। इस कानून के क्रियान्वयन के बाद से भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आई है। सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण द्वारा इस कारगर कानून की प्रभाविता को बढ़ाया जा सकता है।

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