"एक संतुष्ट सूअर होने की अपेक्षा असंतुष्ट मनुष्य होना श्रेष्ठ है, संतुष्ट मूर्ख होने की अपेक्षा असंतुष्ट सुकरात होना श्रेष्ठ है।" आपके लिये उपरोक्त अवतरण का वर्तमान संदर्भ में क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिये।
18 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नप्रसिद्ध उपयोगितावादी दार्शनिक जे.एस.मिल ने यह प्रसिद्ध कथन अपनी उस मान्यता के परिप्रेक्ष्य में दिया है जिसके अनुसार वो विभिन्न प्रकार के सुखों में न केवल मात्रात्मक अपितु गुणात्मक अंतर भी स्वीकारते हैं।
एक पशु की प्रवृत्ति भोग (भोजन) और काम में ही सुख प्राप्त करने की होती है जबकि एक मनुष्य भोग और काम के अलावा खेल, साहित्य, ऐश्वर्य आदि में सुख खोजता है और इस प्रक्रिया में पशु की अपेक्षा कम संतुष्ट रहता है, परंतु उसकी प्रवृत्ति पशु से श्रेष्ठ है। इसी प्रकार एक ज्ञानी, परोपकारी पुरुष सदैव ज्ञान की खोज और दूसरों का भला करने की चाह में प्रायः असंतुष्ट ही रहता है क्योंकि न तो ‘पूर्ण ज्ञानी’ होना संभव है और न ही समस्त संसार के प्राणियों को सुखी बना देना। परंतु, वह ज्ञानी और परोपकारी उस संतुष्ट मूर्ख से श्रेष्ठ है जिसने अपने सुख के सभी साधन जुटा लिये हों तथा अपने ज्ञान को ही पूर्ण ज्ञान समझता हो।
वर्तमान परिदृश्य में देखें तो लोग भौतिक सुख की चाह में व्याकुल और विचलित हैं। वे सुखों की उत्कृष्टता एवं निकृष्टता पर गौर करने की बजाय अपने बौद्धिक एवं मानसिक उत्थान की जगह क्षणिक शारीरिक सुखों को प्राप्त करने में अपनी ऊर्जा व्यय कर रहे हैं। उन्हें सुखों की उच्चतर स्थिति का एहसास नहीं है। उदाहरण के तौर पर डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन में राष्ट्रपति बनने तक का सफर तय करने के पश्चात् भी एक असंतुष्टी का भाव था, वह असंतुष्ट थे, क्योंकि वे एक शिक्षक के तौर पर अपने ज्ञान का सर्वसार युवाओं पर लुटाना चाहते थे। इस लिहाज़ से वे एक वैभवशाली व विलासितापूर्ण जीवन जीने वाले संतुष्ट इंसान से कहीं श्रेष्ठ थे।
महात्मा गांधी ने भी सदा ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ का आदर्श सबके सामने प्रस्तुत किया। उनके जीवन परिचय से ज्ञात होता है कि दूसरों की मदद करने में, सफाई रखने में, साहित्य पढ़ने और लेख लिखने में उन्हें अत्यधिक खुशी मिलती थी। मेरी भी यही अवधारणा है कि हमें श्रेष्ठ प्रवृत्तियों का विकास तथा उच्चतर सुखों की खोज का प्रयास करना चाहिये।