“भय और अधूरी इच्छाएँ ही समस्त दुखों का मूल हैं।
04 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नआधुनिक तकनीकी युग में मानव की उपलब्धियों की व्याख्या उसके द्वारा अर्जित भौतिक संसाधनों की प्राप्ति के रूप में होती है। वह अपनी उपलब्धियों को बढ़ाने की इच्छा से निरंतर प्रेरित रहता है। परंतु उसकी इच्छाएँ दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। वह अतिशीघ्रता से सभी प्राप्य भौतिक सुखों को पाना चाहता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि पहला द्वंद्व सही और गलत रास्ते के चुनाव को लेकर होगा। जल्दबाज़ी में यदि गलत रास्ता चुन लिया तो भय भी उत्पन्न होगा क्योंकि भय की उपस्थिति प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में बीज रूप में सदैव उपस्थित रहती है। यदि सही रास्ते का चयन किया तो संभव है कि कुछ इच्छाएँ अधूरी रह जाएँ। ऐसे में दोनों रास्ते ऐसी स्थिति में पहुँचाते हैं जो एक सीमा के पश्चात् दुख का कारण बनती है।
वर्तमान में व्यक्ति को परिवार, समाज और कार्यस्थल पर विभिन्न प्रकार के निर्णय लेने होते हैं। इन निर्णयों में अनेक बार निजी हित और अन्यों के हितों का टकराव भी होता है, कई निर्णय गलत भी साबित होते हैं और अनेक बार हमारे निर्णय हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने में असमर्थ होते हैं। प्रत्येक निर्णय में कुछ-न-कुछ द्वंद्व उपस्थित रहता है। इस द्वंद्व का आधार प्रायः भय और अधूरी इच्छाएँ ही होती हैं जो अंततः दुःख का कारण बनती हैं।
परंतु, भय और अधूरी इच्छाओं से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी संभव है। भय से कई बार मनुष्य अनुचित कार्य के प्रति हतोत्साहित होता है तथा अधूरी इच्छाएँ कई बार मनुष्य को महात्मा बुद्ध की तरह ज्ञान के प्रकाश की ओर भी ले जा सकती है।