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प्रश्न :
वर्तमान में राजनीतिक परिवारों के युवा राजनीति के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति की अपेक्षा अपने परिवार की महत्त्वाकांक्षाओं के कारण राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा मिलने से न केवल लोकतंत्र की मूल भावना प्रभावित हो रही है बल्कि राजनीति में नैतिक मूल्यों में भी गिरावट आई है। इस संदर्भ में अपनी सहमति या असहमति को उदाहरण देकर समझाएँ।
14 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
राजनीति में परिवारवाद कोई नई परंपरा नहीं है। जिस प्रकार इतिहास में विभिन्न राजवंश अपनी सबसे योग्य संतान को सत्ता हस्तांतरित करते हुए शासन चलाते रहे हैं वैसे ही लोकतंत्र में भी जनता अमूमन अपने प्रिय राजनेता की संतान को स्वीकारती रही है। कुछ उदाहरणों को छोड़ दें तो भारत की राजनीति में परिवारवाद प्रायः सफल रहा है। कांग्रेस में गांधी परिवार तथा विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों, जैसे- इंडियन नेशनल लोकदल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल आदि का उदाहरण इसके परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
परंतु अहम प्रश्न यह है कि क्या इन परिवारों के युवा सचमुच अपनी अभिवृत्ति के अनुरूप ही राजनीति का चुनाव करते हैं? यदि ‘हाँ’ तो यह व्यावहारिक तौर पर कोई विवाद का विषय नहीं है, क्योंकि प्राचीन काल में वर्णव्यवस्था के अंतर्गत परिवार का व्यवसाय संतान ही संभालती थी। इससे कौशल का उत्तरोत्तर हस्तांतरण होता था। परंतु सैद्धांतिक तौर पर लोकतंत्र में यह परंपरा असहज स्थिति उत्पन्न करती है। लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को उच्च पद पर पहुँचने का अधिकार है, परंतु परिवारवाद के चलते सत्ताधारी और अधिकार संपन्न वर्ग अन्यों को ‘समान अवसर के अधिकार’ से वंचित रखते हैं, जो लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। दूसरा जब लोकतंत्र में सत्ता एक ही परिवार ममे पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है तो उस परिवार के सदस्य सत्ता को अपना नैसर्गिक अधिकार समझ धन बल से सदैव सत्ता में बने रहना चाहते हैं, जिससे पुनः लोकतंत्र का मर्म आहात होता है।यदि राजनीतिक परिवार के युवा अपनी अभिवृत्ति के विपरीत पारिवारिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते राजनीति में आते हैं तो यह व्यक्तिगत तौर पर न केवल उस युवा के लिये अहितकर है, बल्कि लोकतंत्र के लिये भी शुभ नहीं है। क्यों कि लोकतंत्र में राजनीतिक निर्णय देश के भविष्य की दशा एवं दिशा तय करते हैं। यदि किसी की मनोवृत्ति राजनीती के अनुकूल नहीं है तो वह सही राजनीतिक फैसले भी नहीं ले पाएगा।
मेरा मानना है कि आमतौर पर राजनीतिक परिवार में परवरिश होने के कारण उन परिवारों के युवाओं की मनोवृत्ति राजनीति के अनुकूल हो ही जाती है। बहुत कम ऐसे अपवाद हैं जब कोई जबरदस्ती राजनीति में आया हो।
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