मानवीय मूल्यों का विकास समाज में रहते हुए ही संभव है। आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में एकाकीपन के साथ रहने को अभिशप्त व्यक्ति में ये मूल्य दम तोड़ रहे हैं। इस संबंध में आपका क्या मत है? उदाहरणों से अपने मत को संपुष्ट कीजिये।
17 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्ननैतिकता सदैव समाज सापेक्ष होती है। समाज में ही नैतिक मूल्यों का निर्माण होता है और समाज के लोगों की अंतर्क्रिया के फलस्वरूप ही इसका विकास होता है। समय के साथ-साथ समाज की व्यवस्थाओं में परिवर्तन आने पर प्रायः नैतिक प्रगति या अवनति देखी गई है।
आज का मनुष्य अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने की दौड़ में एक वस्तु बन गया है। उसकी ज़िंदगी इतनी व्यस्त हो गई है कि समाज की बात तो छोड़िये उसके पास स्वयं के लिये वक्त नहीं है। प्यार, संवेदना, परोपकार, भाईचारा जैसे मूल्य उसकी व्यस्त जिंदगी में कहीं खो गए हैं। वह सड़क पर घायल पड़े व्यक्ति की मदद नहीं करता क्योंकि न तो उसके पास वक्त है और न ही वह पुलिस की कार्रवाई में उलझना चाहता है; वह अपने संबंधियों से मिलने खुशी के मौके पर तो दूर की बात है, मातम की स्थिति में भी नहीं जाता। मानवीय संवेदनाएँ ऐसे एकाकी जीवन में दम तोड़ रही हैं, चाहे इसके मूल में जो भी कारण हों।
एक मनुष्य और पशु में मूल अंतर यह है कि एक पशु अपनी इच्छाओं से नियंत्रित होता है और मनुष्य मस्तिष्क से। मनुष्य सोच सकता है और उसने अपनी विचारशक्ति से ही समय के विभिन्न दौरों में नैतिक मूल्यों का निर्माण और विकास किया है। जिनमें सबसे अहम मूल्य मानवता का है। आज आवश्यकता है कि नई पीढ़ी में बचपन से नैतिक मूल्यों के सुदृढ़ीकरण की नींव डाली जाए, ताकि जीवन की परिस्थितियाँ कैसी भी हों, वह उनसे जूझते हुए भी नैतिक मूल्यों को खुद में संजोए रखे।