अर्द्ध-न्यायिक (न्यायिकवत्) निकाय से क्या तात्पर्य है? ठोस उदाहरणों की सहायता से स्पष्ट कीजिये।
10 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
अर्द्ध-न्यायिक निकाय का सामान्य परिचय देते हुए उत्तर आरंभ करें-
अर्द्ध-न्यायिक निकाय ऐसा संगठन है, जिसके पास कानून लागू करने वाली निकायों (जैसे- न्यायालय) के समान शक्ति होती है, किंतु ये न्यायालय नहीं होते।
विषय-वस्तु के पहले भाग में हम अर्द्ध-न्यायिक निकाय के बारे में थोड़ा विस्तार देते हुए उसके उदाहरण पेश करेंगे-
कोई भी प्राधिकरण तभी अर्द्ध-न्यायिक कहा जाता है जब उसके पास न्यायिक कार्य करने की कुछ विशेषताएँ हों, लेकिन सभी नहीं। जहाँ न्यायालय सभी विवादों में निर्णय देने की क्षमता रखता है, वहीं अर्द्ध-न्यायिक निकाय की शक्तियाँ अक्सर एक विशेष क्षेत्र तक ही सीमित रहती हैं। इनके द्वारा दिये गए दंड अपराध की प्रकृति एवं गहनता पर निर्भर होते हैं, जिसे न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। ये मूलत: प्रशासन से जुड़े विवादों को देखती हैं। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन (NCDRC) केवल उन विवादों को देखता है जिनमें उपभोक्ता को सेवा या उत्पाद प्रदाता द्वारा धोखा मिला हो।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकायों के उदाहरण देंगे-
भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकायों के उदाहरण
उपरोक्त निकायों के अतिरिक्त उपभोक्ता न्यायालय, केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण आदि भी अर्द्ध-न्यायिक निकायों की श्रेणी में आते हैं।
अर्द्ध-न्यायिक निकायों की सीमाएँ-
अंत में संक्षिप्त, सरगर्भित एवं संतुलित निष्कर्ष लिखें।
हालाँकि अर्द्ध-न्यायिक निकाय की अपनी सीमाएँ हैं इसके बावजूद यह कई मायनों में काफी महत्त्वपूर्ण है। अर्द्ध-न्यायिक निकाय न्यायपालिका के कार्यभार को कम करने के साथ-साथ जटिल मुद्दों का विशेषीकृत समाधान निकालने में सक्षम है। यह कम खर्च में तीव्र न्याय दिलाने में सहायता करता है। इसके अंतर्गत परंपरागत न्यायिक प्रक्रिया से इतर खुली कार्रवाई एवं तर्क के आधार पर निर्णय होता है।