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प्रश्न :
चाणक्य ने अर्थशास्त्र में दर्शाया है कि "राजा संवैधानिक दास होता है।" इस कथन के आलोक में कानून, नियम और विनियम के नैतिक निर्देश के स्रोत के रूप में क्या महत्व है? क्या औपचारिक नियमों और निर्देशों की शासन में कोई सीमा है? मूल्य और नैतिकता किस प्रकार इस अंतराल को भर सकते हैं?
05 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
राजा को संविधान में उल्लेखित दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करना चाहिये। वह कानून से ऊपर नहीं है क्योंकि ‘कानून राजा है, न कि राजा कानून’। संविधानवाद राजा (शासक) पर बंधन लगाता है और यह शासक का नैतिक दायित्व है कि वह संविधान से बंध कर रहे।
इसी परिप्रेक्ष्य में कानून, नियम और विनियम (Law, Rule and Regulation) मार्गदर्शक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं। ये स्पष्टता प्रदान करते हैं और अधिकारियों को वैयक्तिक पसंद से इतर निष्पक्षता का पालन कर निर्णय लेने में मदद करते हैं। जैसे- योग्यता के आधार पर नियुक्ति, स्थायी कार्यकारिणी में भाई-भतीजावाद को रोकने में मदद करती है।
हालाँकि, कानून, नियम और विनियम की इस परिप्रेक्ष्य में कुछ सीमाएँ हैं-- ये मानव के प्रत्येक कार्य और कार्रवाई को निर्देशित नहीं कर सकते हैं।
- कुछ स्तर पर ‘विवेक’ का प्रयोग आवश्यक है ताकि मानवीय और व्यावहारात्मक पहचान को बनाए रखा जा सके और प्रशासन को मशीन में बदलने से रोका जा सके।
अतः कानून, नियम और विनियम को शासन के स्रोत के रूप में प्रयोग करने की एक सीमा है जिसे मूल्यों के आधार पर नियंत्रित कर बेहतर निर्णयन को स्थापित किया जा सकता है।
नीतिशास्त्र, शासन में समानुभूति, करुणा को सुनिश्चित करता है जिसे वस्तुनिष्ठ कानून द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, एक कार्यालय में किसी सेवानिवृत्त वृद्ध के ऑफिस में 5-10 मिनट देरी से आने के बाद भी उसकी आवश्यकताओं को सुनना। इस प्रकार प्रशासन में अंतर्रात्मा को जोड़ने की आवश्यकता है।
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