समस्या न तो लोकतंत्र में है और न ही संसदीय प्रणाली में, बल्कि मूल समस्या हमारे नैतिक मूल्यों के पतन की है जिसके कारण लोकतंत्र तथा जनमत के मूल्यों को पूर्ण सम्मान के साथ नहीं देखा जा रहा है। कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर :
भूमिका में :-
भारतीय शासन प्रणाली के सामान्य परिचय के साथ उत्तर प्रारंभ करें।
विषय-वस्तु में :-
लोकतंत्र/संसदीय प्रणाली का औचित्य एवं ‘समस्या’ का विवरण प्रस्तुत करें, जैसे :
औचित्य :
- 7 दशक तक के सफल लोकतंत्र ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत के लिये यह उपयुक्त/उचित प्रणाली है।
- ‘संसदीय व्यवस्था’ ने भी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है।
- ये दोनों प्रणालियाँ किसी भी समाज एवं राज्य के लिये श्रेष्ठ होती हैं क्योंकि इनमें ‘जनहित’ की भावना सर्वोपरि होती है, अधिकारों की सुनिश्चितता होती है तथा अल्पसंख्यकों को भी समान रूप से राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है।
समस्या :
- वर्तमान समय में लोकतंत्र एवं संसदीय प्रणाली में मूल्यों का ह्रास तेज़ी से हो रहा है। अपराधियों का राजनीतिकरण तथा राजनीति का अपराधीकरण, संसद में अभद्र भाषा का प्रयोग, बहस का गिरता स्तर, सांसदों की खरीद-फरोख्त, चुनावों में धाँधली, कानून निर्माताओं द्वारा विधायिका में ‘पोर्न’ देखना आदि लोकतंत्र एवं संसद के गिरते मूल्यों को प्रमाणित करते हैं।
मानवीय मूल्यों के पतन के कारण इन संस्थाओं के पतन का विवरण प्रस्तुत करें, जैसे :
- कोई भी संस्था स्वयं में अमूर्त होती है और ‘जनमत’ ही इन्हें मूर्त बनाता है।
- मतदाताओं तथा निर्वाचित होने वाले उम्मीदवारों पर संसद तथा लोकतंत्र का भविष्य आधारित होता है।
- यदि दोनों के नैतिक मूल्य उच्च हैं तो निःसंदेह लोकतांत्रिक संस्थाओं का निष्पादन भी बेहतर होगा।
- वर्तमान में बढ़ता सत्ता एवं धन का लालच समाज के साथ-साथ इन राजनीतिक संस्थाओं के पतन का मुख्य कारण है।
- राजनीतिज्ञ लालच देकर जनता का समर्थन हासिल करते हैं तथा जनता कभी मजबूरीवश तो कभी लालच एवं स्वार्थ के वशीभूत होकर इन्हें मत देती है जो कि अंततः लोकतंत्र में ह्रास का प्रमुख कारण बनता है।
अंत में प्रश्नानुसार संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष प्रस्तुत करें।
नोट : निर्धारित शब्द-सीमा में उत्तर को विश्लेषित करके लिखें।