मैं वह नहीं हूँ जो मैं समझता हूँ कि मैं हूँ; मैं वह भी नहीं हूँ जो तुम समझते हो कि मैं हूँ; मैं वह हूँ जो मैं समझता हूँ कि तुम समझते हो कि मैं हूँ” -इस कथन की व्याख्या करते हुए सामाजिक नैतिकता के निर्धारण में इसके महत्त्व को बताएँ।
02 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर की रूपरेखा:
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समाजशास्त्री चार्ल्स हटन कुले का व्यक्ति की सेल्फ इमेज से संबंधित यह कथन सरल शब्दों में यह बताता है कि कैसे एक व्यक्ति अपने मन में स्वयं के प्रति दूसरों की सोच का अनुमान लगा कर उसके अनुसार ही व्यवहार करता है। ऐसे में यह आवश्यक नहीं कि दूसरा व्यक्ति वास्तव में उसकी सोच के अनुसार ही उसे समझे। उदाहरण के लिये 1943 में गांधीजी के आमरण अनशन को लिया जा सकता है। महात्मा गांधी यह मानते थे कि उनके अनशन से ब्रिटिश सरकार और ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल पर भारत को स्वतंत्र करने का दबाव बढ़ेगा, किंतु वास्तव में चर्चिल को गांधी की मृत्यु की जरा भी चिंता नहीं थी। बाद में इस बात का पता चलने पर गांधीजी की सोच बदली और उन्होंने आमरण अनशन ही समाप्त कर दिया।
हमारी नैतिकता हमारे सामाजिक संबंधों तथा हमारे अभिवृत्तियों से प्रभावित होती है और इन दोनों ही तत्त्वों के निर्धारण में यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम क्या सोचते हैं कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं। उदाहरण के लिये यदि एक व्यक्ति के मन में यह विश्वास हो कि उसके परिवार वाले तथा उसके दोस्त उससे प्रेम करते हैं, भले ही वास्तव में ऐसा ना हो, तो वह खुश रहेगा और उनके प्रति प्रेम तथा नैतिकता की भावना से भरा रहेगा। किंतु यदि अपने अच्छे दोस्तों के प्रति उसके मन में शक हो तो वह आसानी से उनके प्रति नैतिक नहीं रह पाएगा। स्पष्ट है कि कुले का यह कथन नैतिकता के महत्त्वपूर्ण निर्धारकों में शामिल है।