इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। इस कथन का समालोचना पूर्वक विश्लेषण कीजिये।
03 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर की रूपरेखा:
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प्रस्तुत कथन भारत के महान विचारक डाँ भीमराव अंबेडकर का है। कथन का आशय यह है कि जहाँ पर व्यक्ति को स्वेच्छा से उसके आर्थिक हित एवं नैतिकता में किसी एक का चयन करना होता है सामान्यत: वह वहाँ अपने आर्थिक हितों को ही प्राथमिकता देता है। अंबेडकर का यह कथन बताता है कि सामान्यत: व्यक्ति तभी तक नैतिक बना रहता है, जब तक नैतिकता उसके पक्ष में हो या उसके पास इसके अलावा कोई अन्य विकल्प न हो।
भौतिकता के प्रसार से आज इस अवधारणा को हर जगह देखा जा सकता है। उदाहरण के लिये ब्रिटेन अपने आर्थिक हितों को साधने के लिये भारत पर लंबे समय तक शासन करता रहा। ब्रिटिश शासन द्वारा भारत को आजाद तभी किया गया जब उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। उसी प्रकार वर्तमान समय में अमेरिका द्वारा फिलिस्तीन के मुद्दे पर इजरायल का पक्ष लिया जाना तथा चीन द्वारा पाकिस्तान के आतंकवादियों के पक्ष में वीटो करना इसके कुछ उदाहरण है। आर्थिक हितों के लिये सघन जनघनत्व वाले प्रदेशों में स्थानीय लोगों की ईच्छा के विरूद्ध नदी घाटी परियोजनाओं का निर्माण भी इसी का एक उदाहरण है।
किंतु महान व्यक्ति अर्थशास्त्र की जगह नैतिकता से संचालित होते हैं। महात्मा गांधी, मदर टेरेसा तथा एपीजे अब्दुल कलाम जैसे व्यक्ति ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं। रतन नवल टाटा जैसे लोग नैतिकता का पालन करते हुए भी अर्थशास्त्र की दृष्टि से सफलतम व्यक्तियों में शामिल हैं। उदाहरण के लिये, वैश्विक मंदी के दौरान अर्थशास्त्र की दृष्टि से धारणीय नहीं होने के बाद भी उन्होंने नैतिकता के आधार पर बड़े पैमाने पर अपने कर्मचारियों को नियोजन में बनाए रखा। यह दर्शाता है कि नैतिकता तथा अर्थशास्त्र में द्वंद्व आवश्यक नहीं है।।
किंतु ऐसी घटनाएँ इतनी कम हैं कि इन्हें अपवाद माना जा सकता है। वास्तव में व्यवहार में अंबेडकर का यह कथन अत्यंत सही प्रतीत होता है। विश्व के नैतिक उत्कर्ष के लिये ऐसी प्रवृत्तियों से बचना आवश्यक है।