लोगों की एक सामान्य मान्यता है कि त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति लोक सेवा में अधिक समय तक टिक नहीं पाते हैं। इस संबंध में आपकी मान्यता क्या है? स्पष्ट करें।
11 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नसत्यनिष्ठा व्यक्ति की निजी विशेषता होती है बशर्ते की वह बेईमान, अनैतिक या दुष्ट किस्म का न हो। यह चरित्र की पूर्णता को निर्दिष्ट करती है जिसके सभी अवयवों में आतंरिक सुसंगति होती है। लोक सेवा में सत्यनिष्ठा के सर्वोच्च प्रतिमानों की अपेक्षा की जाती है,क्योंकि एक पब्लिक ऑफिस में बैठने वाले व्यक्ति को एक ही साथ प्रलोभन, भय, डर, धमकी इत्यादि सभी प्रकार के उपायों द्वारा उसके निर्णय को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है।
लेकिन आजकल आमजन में और कुछ सिविल सेवकों में भी यह धारणा बैठ चुकी है कि ‘त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा’ एक अकादमिक शब्द है तथा यह व्यवहारिकता से परे है। अतः वे सभी ‘त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा’ की बजाय ‘व्यवहारिक सत्यनिष्ठा’ को अधिक अपनाते हैं। इसके लिये कुछ वस्तुगत कारण हैं जो निम्न हैं
पर यह स्थापित सत्य है कि ‘सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नही’। अतः समझौतावादी लोगों को शुरुआती बढ़त भले ही मिल जाए, पर वे लंबी रेस के घोड़े साबित नही होते हैं। हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति नें सार्वजनिक जीवन में रहते हुए बड़े से बड़े पदों को छुआ है। टी. एन. शेषन, मनमोहन सिंह इत्यादि ऐसे ही उदाहरण हैं।
अन्य कारणों से भी त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा आवश्यक है। उच्च सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति आतंरिक एवं बाह्य रूप से काफी मज़बूत होते हैं। वे सार्वजनिक जीवन में रहते हुए विभिन्न दबावों से मुक्त रहते हैं। उनके कार्यों की गुणवक्ता एवं उत्पादकता सर्वोच्च होती है।
अतः त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा वाले व्यक्ति ही लोक सेवा में अधिक समय तक टिक पाते हैं और देश-समाज के विकास में अपना अनन्य योगदान भी दे पाते हैं।