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प्रश्न :
व्यापार में लाभ और नैतिकता को विरोधाभासी माना जाता है क्योंकि लाभ में स्वार्थ की भावना है जबकि नैतिकता दूसरों की भावनाओं को भी मान्यता देती है, अतः व्यापार में लाभ और नैतिकता में किसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए?
14 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
निःसंदेह लाभ हर व्यापार संगठन के लिये महत्त्वपूर्ण पहलू है, लेकिन नैतिकता को दरकिनार करके लाभ पर एकाग्रता करने की सोच चिंताजनक है।
परंपरागत रूप से लाभ और नैतिकता को विरोधाभासी माना जाता है क्योंकि व्यापार के निर्णय में हितों का टकराव बना रहता है। यह टकराव व्यापार में स्वार्थ और नैतिकता के बीच में हमेशा आता-जाता है। परंपरागत तौर पर यह माना जा रहा है कि लाभ स्वार्थ को दर्शाता है जबकि नैतिकता दूसरों की भावनाओं को भी मान्यता देती है, इसलिये दोनों के बीच में विरोधाभास होता है।
हालाँकि, पिछले कुछ दशकों से नया विचार प्रचलित है, जिसमें किसी भी व्यवसाय का ध्यान केवल लाभ पर केंद्रित न करके अपने हितधारक (स्टेकहोल्डर) की भलाई पर ज़्यादा देना चाहिये। नैतिक व्यापार सभी के हितों का संतुलन बनाये रखता है। इसलिये नैतिकता और व्यापार दोनों आपस में विरोधाभासी नहीं, बल्कि पूरक हैं। नैतिक व्यापार लाभदायक व्यवसाय के विरोध में नहीं है, बल्कि हाल के घटनाक्रम में दिखता है कि नैतिक व्यापार दीर्घकालिक हित में है। नैतिक व्यापार से व्यवसाय की विश्वसनीयता बढ़ जाती है और इससे व्यापार में बहुत लाभ हो सकता है। यह विश्वास व्यापार में नवाचारों को वृद्धि के लिये प्रोत्साहित करता है, इससे संगठन की कुशलता और प्रभावशीलता बढ़ती है। इसीलिये, व्यापार लाभ और नैतिकता का परस्पर सह-संबंध है।
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