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प्रश्न :
कोई भी नैतिक नियम सार्वभौमिक नहीं हो सकता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत करें।
17 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- नैतिकता की परिभाषा
- कुछ ऐसे नैतिक नियमों के उदाहरण जो समय, काल एवं परिस्थिति के अनुसार बदल गये हों अर्थात सार्वभौमिक प्रकार के नहीं हैं।
- कुछ सार्वभौमिक प्रकार के नैतिक नियमों के उदाहरण
- निष्कर्ष
नैतिकता से तात्पर्य सामाजिक नियमों का ऐसा संग्रह जो उस समाज के लोगों के आचरण, व्यवहार, कृत्य आदि को निर्देशित करता है और उसे सही और गलत के पैमाने पर तौलता है। कई ऐसी प्रथाएँ हैं जिन्हें एक समाज में नैतिक मान्यता प्राप्त है या यूँ कहें कि इन परंपराओं को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है, जबकि दूसरे समाज में इन्हीं परंपराओं को अनैतिक समझा जाता है। उदाहरण के लिये विवाह पूर्व यौन संबंध हमारे देश में अनैतिक समझे जाते हैं, जबकि पश्चिमी देशों में इसे सामाजिक मान्यता प्राप्त है।
इसी प्रकार प्राचीन तथा मध्यकालीन भारतीय समाज में सती प्रथा को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त थी और इसे नैतिक भी समझा जाता था, परंतु वर्तमान में इसे एक अमानवीय कृत्य समझा जाता है। ऐसे और भी कई उदाहरण है जहाँ नैतिकता देश, समय व काल से प्रभावित होती है, जैसे- महिलाओं की स्थिति, बहुविवाह व अन्य कई सामाजिक-धार्मिक मान्यताएँ। इससे यह सहज ही प्रतीत होता है कि कोई भी नैतिक नियम सार्वभौमिक नहीं है और यह देश, काल व परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
परंतु यदि हम संपूर्ण मानव सभ्यता के विकास पर नज़र दौड़ाते हैं तो पाते हैं कि कई ऐसी मान्यताएँ, प्रथाएँ व नियम हैं जिन्हें सार्वभौमिक स्वीकृति प्राप्त है, साथ ही कई नियम सार्वभौमिक रूप से गलत कहे जाते हैं। ये देश, काल व समाज से प्रभावित नहीं होते हैं। उदाहरण के लिये दया, करुणा, कष्ट में पड़े व्यक्ति की सहायता करना, वीरता आदि वे नैतिक मान्यताएँ हैं, जिन्हें प्रत्येक समाज व हर युग में नैतिक माना गया है। इसका प्रमाण हमें इस बात से मिलता है कि इन्हीं नैतिक मान्यताओं से प्रभावित होकर अशोक जैसे शासक ने आज से हज़ारों वर्ष पहले न केवल अपने राज्य बल्कि विदेशों में भी मनुष्यों व जानवरों तक के लिये करुणा और दया भाव दिखाते हुए अस्पताल आदि का निर्माण कराया तथा वर्तमान समय में भी इन्हीं मान्यताओं से प्रभावित होकर पेटा (PETA), रेडक्रास और यूनीसेफ (UNICEF) जैसी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं।
अतः निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि निश्चय ही नैतिक मान्यताएँ देश, काल व परिस्थितियों से प्रभावित होती हैं, परंतु कुछ ऐसी सार्वभौमिक नैतिक मान्यताएँ हैं जो संपूर्ण मानवता के लिये हर काल, समय व परिस्थिति में सर्वमान्य हैं।
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