उत्तर :
माँ बच्चों की प्राथमिक शिक्षिका है और परिवार प्रथम पाठशाला। यह एक परंपरागत मान्यता है और यह पूर्णतः सही भी है। परिवार से ही बच्चों का समाजीकरण प्रारंभ होता है। बच्चे परिवार का जैसा माहौल देखते हैं, वैसा ही सीखते हैं। मूल्यों के निर्माण व संरक्षण में परिवार की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है, इसे हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर देख सकते हैं:
- परिवार बच्चों के कार्यों का सबसे नज़दीकी प्रेक्षक होता है और वह उसके कार्यों के प्रति सही प्रतिक्रिया देकर बहुत कुछ सिखा सकता है, जैसे- बच्चों में झूठ, लालच आदि के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति विकसित करने में परिवार के सदस्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- परिवार बच्चों द्वारा किये गए अच्छे कार्यों के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया देकर उनमें अच्छे मूल्यों को बढ़ावा दे सकता है। उदाहरण के लिये बच्चों में दूसरों की सहायता करने के भाव को बढ़ावा देकर उनमें सहानुभूति व करुणा जैसे मूल्यों को बढ़ाया जा सकता है।
- महिलाओं के प्रति सम्मान व आदर का भाव बच्चों को शुरू से ही सिखाया जाना चाहिये और इसमें परिवार की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है, वर्तमान समय में जब महिलाओं के प्रति हिंसा और उनका उपभोगवादी चित्रण काफी बढ़ा हुआ है। ऐसे समय में परिवार बच्चों को महिलाओं के समान व उनके समानता के अधिकार के संबंध में सजग व जागरूक बनाने में सहायक हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त देशभक्ति, ईमानदारी, अहिंसा, पर्यावरण संरक्षण, वैज्ञानिक व तार्किक सोच के विकास में परिवार की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
- किंतु वर्तमान समय में सोशल मीडिया, इंटरनेट आदि के कारण बच्चों के पास सूचनाओं की बहुतायत उपलब्धता है। ‘पब्लिक डोमेन’ में बहुत सारी सूचनाएँ नकली व भ्रामक होती है जो बच्चों के चंचल मन को आसानी से भ्रमित कर सकती हैं। ऐसे में बच्चों को सही जानकारी परिवार के द्वारा ही प्रदान की जा सकती है।
इस प्रकार परिवार, बच्चे व बाह्य विश्व के बीच संपर्क का पहला बिंदु है। अतः परिवार में बच्चों को जो सिखाया जाता है वह की धीरे-धीरे बच्चों की आदत बन जाती है। बच्चों के अंदर सामाजिक-नैतिक मूल्यों के विकास व संरक्षण में परिवार की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।