वंशवादी राजनीति पर प्रकाश डालते हुए बताएँ कि यह नैतिकता की दृष्टि से कितनी उचित है?
03 Feb, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर की रूपरेखा:
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वंशवादी राजनीति का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जिसमें राजनीति में किसी एक वंश अथवा परिवार के लोगों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसमें महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पद एक वंश से जुड़े हुए लोगों के लिये ही आरक्षित होते हैं। भारत में केंद्र में काँन्ग्रेस तथा उत्तर प्रदेश एवं बिहार के कुछ राजनीतिक दलों में इस प्रवृत्ति को देखा जा सकता है।
नैतिकता की दृष्टि से देखा जाए तो वंशवादी राजनीति लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध होने के कारण अनैतिक है। इसमें चयन का अधिकार सीमित हो जाता है तथा राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र के स्थान पर एक वंश की तानाशाही से संचालित होते है। इसके अलावा वंश आधारित राजनीति में योग्यता के स्थान पर जन्म को अधिक महत्त्व दिया जाता है। योग्यता के स्थान पर जन्म को महत्त्व दिया जाना नैतिकता के आधारभूत सिद्धांतों का उल्लंघन है। वर्तमान समय में जाति प्रथा तथा नस्लीय भेदभाव जैसी अनैतिक समस्याओं के मूल में इस कारण को देखा जा सकता है। इसके अलावा वंशवादी राजनीति, दल में चाटुकारिता तथा चापलूसी की अवधारणा को भी बढ़ावा देती है क्योंकि परिवार विशेष का पक्ष लेने वाले व्यक्तियों को दल के महत्त्वपूर्ण पद प्राप्त होते हैं। ये दोनों ही अवधारणाएँ नैतिकता की दृष्टि से अनुचित हैं।
इसके अलावा कई देशों के अध्ययन बताते हैं कि वंशवादी राजनीति से दक्षता नकारात्मक ढंग से प्रभावित होती है तथा जन कल्याण के कार्यों में भी अवरोध उत्पन्न होता है। अतः यह सत्ता तथा सरकार की दृष्टि से भी नुकसानदेह है। यदि वंशवादी राजनीति से लाभ भी हो तो भी यह कांट के ‘निरपेक्ष नैतिकता’ के सिद्धांत तथा गांधी के ‘साध्य तथा साधन की पवित्रता’ के सिद्धांत के अनुसार नैतिकता की दृष्टि से अनुचित होगा।
किंतु इस आधार पर एक वंश से जुड़े लोगों को राजनीति से अलग किया जाना भी अनुचित होगा। यदि किसी एक वंश के लोग योग्यता के आधार पर राजनीतिक रूप से उपयुक्त हों और उनका चयन आतंरिक लोकतंत्र के आधार पर किया जाए तो इसे वंशवादी राजनीति नहीं माना जाना चाहिये।