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प्रश्न :
‘नैतिक सापेक्षतावाद’और‘नैतिक वस्तुनिष्ठतावाद’ से आप क्या समझते हैं? क्या आप मानते हैं कि ये अवधारणाएँ भारत जैसे बहुलवादी समाज में सामाजिक विवादों का समाधान करने में सहायक हो सकती है?
07 Feb, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा: - ‘नैतिक सापेक्षतावाद’और‘नैतिक वस्तुनिष्ठतावाद’को उदाहरण की सहायता से स्पष्ट करें।
- भारतीय समाज में इन संकल्पनाओं के महत्त्व को स्पष्ट करें।
सापेक्षवाद एक अवधारणा है जिसमे किसी स्थिति का आकलन परिस्थितियों पर निर्भर करता है। नैतिक सापेक्षवाद का आशय आत्मनिष्ठ मान्यताओं से है। इस अवधारणा के तहत किसी व्यक्ति य समुदाय के लिये नैतिक माने जाने वाला कार्य किसी अन्य व्यक्ति या समुदाय के लिये अनैतिक हो सकता है। इसे निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
- व्यक्ति सापेक्षः व्यक्तिगत स्तर पर मान्य सही/गलत ही नैतिक रूप से सही-गलत होता है। यह व्यक्ति सापेक्ष अवधारणा है।जैसे- लिव-इन रिलेशनशिप का मुद्दा।
- समाज सापेक्षः इसमें नैतिकता समाज व संस्कृति के आधार पर निर्धारित होती है। यह समाज सापेक्ष अवधारणा है। जैसे-माँसाहार जैन समाज के लिये अनैतिक तो अन्य धर्म में नैतिक माना जाता है।
नैतिक सापेक्षवाद से इतर नैतिक निष्पक्षतावाद में मूल्य देश,काल,समाज,संस्कृति से निरपेक्ष होते है हैं। यह प्रत्येक स्थिति में एक समान मान्य होते हैं। जैसे-सत्यनिष्ठा,ईमानदारी, प्रेम इत्यादि मूल्य।
मेरी राय में भारत जैसे बहुलतावादी समाज में झगड़ों के समाधान में नैतिक सापेक्षवाद और नैतिक निष्पक्षतावाद दोनों ही महत्त्वपूर्ण है। जहाँ राज्य,मीडिया व प्रशासन के स्तर पर प्राथमिक तौर पर नैतिक निष्पक्षतावाद के मूल्यों को समाहित करना महत्त्वपूर्ण इससे राज्य, मीडिया व प्रशासन में अपने कार्यों के प्रति निष्पक्षता,वस्तुनिष्ठता, सत्यनिष्ठा, जवाबदेही जैसे मूल्यों को समावेशित करने का भाव बढ़ेगा। साथ ही,सांस्कृतिक विविधता से सामंजस्य बैठाने के लिये नैतिक सापेक्षतावाद का समन्वय महत्त्वपूर्ण है। वहीं व्यक्तिगत व सामाजिक स्तर पर नैतिक सापेक्षवाद के मूल्यों को नागरिकों में समावेशित करना आवश्यक है। इससे नागरिकों में एक-दूसरे की मान्यताओं के प्रति सहिष्णुता का प्रचार होगा जो भारत में सांस्कृतिक समरसता के प्रसार के लिये महत्त्वपूर्ण है। व्यक्तिगत स्तर पर नैतिक निष्पक्षता संबंधी मूल्य जैसे- सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, करूणा इत्यदि का होना आवश्यक है।
यदि यह नैतिक सापेक्षतावाद और नैतिक निष्पक्षतावाद के मूल्यों का राज्य, प्रशासन व मीडिया और भारतीय जनता में प्रवाह बढ़ जाये तो दंगों,आपसी असद्भाव इत्यादि समस्याओें का व्यापक समाधान हो सकता है जो सशक्त राष्ट्र के निर्माण हेतु वांछनीय है।
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