“सदैव इस प्रकार कार्य करो कि तुम भी इच्छा कर सको कि तुम्हारे कार्य का चरम सार्वभौमिक कानून हो जाए।" कथन पर विचार करें।
16 Feb, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर की रूपरेखा:
|
प्रस्तुत कथन पश्चिम के प्रसिद्ध दार्शनिक कांट के निरपेक्ष नैतिकता के सिद्धांत से संबंधित है। कथन के अनुसार व्यक्ति को सदैव ऐसे कार्य करने चाहिये जो नैतिकता की दृष्टि से हर परिस्थिति में उचित हों।
वास्तव में व्यक्ति के कार्य का चरम तभी सार्वभौमिक क़ानून हो सकता है जब वह सभी परिस्थितियों में नैतिक और उचित हो। उदाहरण के लिये प्राणी मात्र के लिये प्रेम की भावना पर आधारित सेवा के कार्य को सार्वभौमिक रूप से उचित माना जा सकता है। विवेकानंद, मदर टेरेसा जैसे लोगों ने प्रेम और सेवा की भावना से परिचालित होकर ऐसे कार्य कियें कि उनके काम का चरम विश्व के लिये अपने आप में प्रतिमान बन गया।
इस कथन का एक आशय यह भी है कि जो कार्य नैतिक है वह अपने आप में परिणाम निरपेक्ष है। अर्थात नैतिकता का संबंध इस बात से नहीं है कि उसके किये जाने से क्या परिणाम प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिये सामान्यतः सच बोलना नैतिक माना जाता है। ऐसे में किसी भी परिस्थिति में झूठ बोलना अनैतिक होगा। उदाहरण के लिये यदि किसी अपराधी द्वारा किसी व्यक्ति का पता पूछे जाने पर यदि व्यक्ति सच-सच बता दें तो संबंधित व्यक्ति को खतरा हो सकता है। परिणाम की दृष्टि से यह उचित नहीं जान पड़ता किंतु कांट के निरपेक्ष नैतिकता इसे भी उचित बताती है।
उपयोगितावादी दृष्टिकोण जो अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख पर बल देता है के अनुसार अधिकतम व्यक्तियों के हित के अनुसार नैतिकता परिवर्तित हो सकती है। ऐसे में कोई भी कार्य अपने आप में सार्वभौमिक रूप से नैतिक नहीं हो सकता।
स्पष्ट है कि नैतिकता एक सापेक्षिक अवधारणा है जो समाज तथा परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। अतः इस दृष्टि से देखा जाए तो व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कार्य अपने चरम रूप में पूर्ण रूप से नैतिक हो ही नहीं सकता। इसके अलावा, यह सिद्धांत कृष्ण की निष्काम कर्म के सिद्धांत के विरुद्ध भी है क्योंकि यह व्यक्ति में उसके कर्म के सार्वभौमिक रूप से नैतिक होने की अपेक्षा भी उत्पन्न करता है।
किंतु गहराई में देखा जाए तो कांट का यह कथन व्यक्ति को सदैव नैतिक कार्य करने के लिये प्रेरित करता है जो कि समाज की दृष्टि से आवश्यक भी है। जैसा कि पूर्वलिखित है प्राणी मात्र के लिये निस्वार्थ प्रेम जैसे भाव सार्वभौमिक रूप से नैतिक हो सकते हैं।