नैतिकता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए मानवीय कृत्यों में नैतिकता को निर्धारित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- नैतिकता का अर्थ
- नैतिकता को निर्धारित करने वाले तत्त्व
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नैतिकता का तात्पर्य नियमों की उस व्यवस्था से है जिसके द्वारा व्यक्ति का अंतःकरण अच्छे और बुरे का बोध प्राप्त करता है। नैतिकता का संदर्भ समाज में रहने वाले किसी सामान्य व्यक्ति के आचरण, समाज की परंपराओं या किसी राष्ट्र की नीतियों के विशेष अर्थ में मूल्यांकन से है। सभी विषयों में मूल्यांकन उपरांत उचित-अनुचित, अच्छा-बुरा, शुभ-अशुभ आदि नैतिकता के प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। सामान्य जीवन में नैतिकता के लिये प्रायः मोरैलिटी शब्द का प्रयोग किया जाता है जबकि अध्ययन के क्षेत्र में एथिक्स का।
अब प्रश्न यह है कि किसी कर्म को नैतिक या अनैतिक सिद्ध करने वाले तत्त्व कौन-से हैं? विभिन्न समाजों एवं विभिन्न कालों में इन निर्धारक तत्त्वों में बदलाव होता रहा है। प्रायः ये निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित माने गए हैं–
- कृत्यः कई बार समाज कुछ कृत्यों को स्पष्टतौर पर अनैतिक घोषित कर देता है। चाहे वह कृत्य किसी के द्वारा तथा किसी भी परिस्थिति में क्यों ना किया गया हो। वर्तमान समय में सती प्रथा, बाल विवाह पूर्णतः प्रतिबंधित है, जबकि मध्यकालीन भारत में ये प्रथाएँ समाज में प्रचलित थीं।
- कर्त्ता: निश्चित तौर पर किसी कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में कर्त्ता की एक बड़ी भूमिका होती है। मान लीजिये किसी व्यक्ति ने अपनी गरीबी से तंग आकर चोरी जैसा अनैतिक कृत्य किया। ऐसे में इस व्यक्ति का कृत्य उस अमीर व्यक्ति के कृत्य से कम अनैतिक समझा जाएगा जिसने ऐशो-आराम के लिये कोई घोटाला किया हो।
- इरादा/प्रयोजनः इरादे की भूमिका आधुनिक समाज में किसी कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
- परिस्थितियाँ: किन परिस्थितियों में कोई कृत्य हुआ है, यह उस कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाता है। उदाहरणतः किसी की हत्या करना अनैतिक समझा जाता है, किंतु कोई व्यक्ति किसी महिला से बलात्कार की कोशिश कर रहा है और उस महिला के हाथ में धारदार हथियार आ जाने से महिला उस व्यक्ति की हत्या कर देती है। ऐसी स्थिति में वह कृत्य अनैतिक नहीं समझा जा सकता।
- परिणामः परिणाम के आधार पर किसी कृत्य को नैतिक या अनैतिक नहीं कहा जा सकता है। किसी कृत्य का परिणाम यदि बुरा आता है तो हमें यह देखना जरूरी है कि कर्त्ता ने किन परिस्थितियों में तथा किस इरादे से यह कृत्य किया है। आधुनिक समाज एवं न्याय व्यवस्था भी प्रयोजन एवं परिस्थिति को परिणाम से प्राथमिक मानती है।