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प्रश्न :
हमारा ज्ञान सीमित और सापेक्ष होता है तथा हमें ईमानदारी से यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिये। महावीर द्वारा दिया गया स्यादवाद का यह सिद्धांत प्राचीन समय से वर्तमान समय तक प्रासंगिक रहा है। चर्चा करें।
17 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- स्यादवाद’ के सिद्धांत को स्पष्ट करें।
- स्यादवाद वर्तमान काल किस तरह से प्रासंगिक है।
दर्शन के क्षेत्र में महावीर का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है- ‘स्यादवाद का सिद्धांत।’ इस सिद्धांत का सीधा सा अर्थ यह है कि हमारा ज्ञान सीमित और सापेक्ष होता है तथा हमें ईमानदारी से यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिये। हमें ऐसे दावे करने से बचना चाहिए कि हमारा ज्ञान असीमित है। ‘स्यादवाद’ मूलतः ‘स्यात्’ शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘संभवतः’ या ‘हो सकता है’। किंतु महावीर ने इस शब्द का प्रयोग जिस अर्थ में किया, वह है ‘सापेक्षतः’। इसका अर्थ है कि हमारे पास जो ज्ञान है, वह निरपेक्ष न होकर सापेक्ष है।
जैन धर्म में स्यादवाद को समझाने के लिए एक कथा का जिक्र किया जाता है जिसे अन्य दार्शनिकों ने भी अपने तरीके से इस्तेमाल किया है। कथा इतनी सी है कि एक बार छः अंधे एक हाथी के सामने पड़ गए और वे अनुमान करना चाह रहे थे कि उनके सामने क्या है? एक ने हाथी की भारी-भरकम टांग को छुआ और घोषणा कर दी कि यह एक खंभा है। दूसरे का हाथ हाथी की सूंड पर चला गया और उसने दावा किया कि यह एक अजगर है। तीसरे के हाथ हाथी की पूँछ आई तो उसने बताया कि यह एक मोटी रस्सी है। चौथे ने उसके पेट को छुआ और घोषणा की कि यह एक दीवार है। इसी प्रकार एक ने उसके कान को छूकर कहा कि यह एक बहुत बड़ा पंखा है। इस कहानी से पता चलता है कि साधारण मनुष्यों में संपूर्ण वास्तविकता को पहचानने की शक्ति नहीं होती है किंतु वे अपने ज्ञान की पूर्णता का दावा ठोकने के लालच में अपने सीमित ज्ञान को ही निरपेक्ष ज्ञान की तरह पेश करते हैं। जिस तरह छहों अंधे नहीं समझ पा रहे कि उनके दावे सत्य से बहुत दूर हैं, उसी प्रकार सामान्य मनुष्य भी जीवन भर निरर्थक दावे करता रहता है किंतु यह नहीं समझ पाता कि उसकी बातों में कोई सार नहीं है। महावीर सुझाते हैं कि मनुष्य को अपने हर दावे से पहले यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसकी बात सापेक्ष रूप में ही सही है। सरल भाषा में कहें तो व्यक्ति को अपनी राय देते हुए कुछ सापेक्षतासूचक वाक्यांशों जैसे ‘जहाँ तक मैं समझता हूँ’, ‘मेरा मानना है’, ‘मेरे ख्याल से’, ‘जितनी जानकारी मेरे पास है, उसके अनुसार’ आदि का प्रयोग करते रहना चाहिए। ऐसी भाषा से विनम्रता तो झलकती ही है, यह खतरा भी नहीं रहता कि व्यक्ति की बात गलत साबित होगी।
अगर ध्यान से देखें तो स्यादवाद वर्तमान काल के लिए एक बेहद जरूरी विचार है। आज दुनिया में तमाम तरह के झगड़े हैं, जैसे- सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद तथा जातिवाद इत्यादि। इन सारे झगड़ों के मूल में बुनियादी दार्शनिक समस्या यही है कि कोई भी व्यक्ति, देश या संस्था अपने दृष्टिकोण से टस से मस होने को तैयार नहीं है। सभी को लगता है कि अंतिम सत्य उन्हीं के पास है। दूसरे के पक्ष को सुनने और समझने का धैर्य किसी के पास नहीं है। अधैर्य इतना अधिक है कि वे अपने निरपेक्ष दावों के लिए दूसरों की जान लेने से भी नहीं चूकते। इस दृष्टि से चाहे इस्लामिक स्टेट जैसा अतिवादी समूह हो या किसी भी विचारधारा को कट्टर रूप में स्वीकार करने वाला कोई अन्य समूह- सभी के साथ मूल समस्या नजरिये की ही है।
स्यादवाद को स्वीकार करते ही हमारा नैतिक दृष्टिकोण बेहतर हो जाता है। हम यह मान लेते हैं कि न तो हम पूरी तरह सही हैं और न ही दूसरे पूरी तरह गलत। हम उनके विचारों को भी स्वीकार करने लगते हैं और दो विरोधी समूहों के बीच सार्थक संवाद की गुंजाइश बन जाती है। अगर विभिन्न धर्मों के बीच ऐसा संवाद होने लगे तो धार्मिक सहिष्णुता और सर्वधर्मसमभाव सिर्फ किताबी बातें नहीं रहेंगी बल्कि हमारी दुनिया का सच बन जाएंगी।To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
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