भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई की नैतिक आधारशिला को मज़बूत करने के लिये किन विशिष्ट उपायों की आवश्यकता है?
23 Mar, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नकौटिल्य ने अर्थशास्त्र लिखते समय मौर्य युग की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा था-
‘जिस प्रकार जिह्वा के अग्रभाग पर लगे मधु अथवा विष को न चख पाना असंभव है, उसी प्रकार सरकारी कोष से संबंध रखने वाले व्यक्ति के लिये यह असंभव है कि वह राजा की संपत्ति के छोटे से अंश का भी रस ग्रहण न करे।’
वास्तव में रस ग्रहण की यह प्रवृत्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई उतनी ही कमजोर पड़ती जा रही है। भ्रष्टाचार विरोधी तमाम नियम-कानूनों के बावजूद चाहे आर्थिक भ्रष्टाचार हो अथवा आचार-व्यवहार से संबंधित सामाजिक-सांस्कृतिक भ्रष्टाचार, यह महत्त्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के कार्य-व्यवहार का हिस्सा बनता जा रहा है।
विश्वास और आस्था बनाने के लिये एक वातावरण की आवश्यकता होती है जहाँ पारदर्शिता, खुलापन, निर्भीकता, निष्पक्षता और न्यायपूर्णता का मूल्य होता है, हमें इसे बढ़ावा देना चाहिये। अक्सर जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई की बात की जाती है तो विशिष्ट उपायों में विभिन्न नियम-कानूनों की बात की जाती है, परंतु अब हमें समझना होगा कि स्पष्ट तौर पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध नियमों का न होना कोई समस्या नहीं है। ईमानदारी पर कोई कानून नहीं बनाया जा सकता है। कानूनी नियम भ्रष्ट दिमाग में भय भले ही उत्पन्न कर दें परंतु भ्रष्ट व्यक्ति का हृदय परिवर्तन नहीं कर सकते हैं जिसकी बात गांधी जी भी किया करते थे। एलेक्जैंडर सोझैन्स्यिन के शब्दों में अच्छाई और बुराई की जो रेखा होती है, वह न तो देशों के बीच से होकर निकलती है और न ही वर्गों के बीच से, बल्कि प्रत्येक मनुष्य के दिल के बीच में से होकर गुजरती है।य् और इस दिल परिवर्तन के लिये आवश्यक है कि नैतिकता के उच्च मानदण्ड शृंखलाबद्ध तरीके से निर्धारित किये जाएँ, आचार संहिता का निर्धारण व्यक्तिगत जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन में किया जाए जहाँ सिर्फ सरकारी अधिकारी ही नहीं बल्कि सामान्य नागरिक, व्यवसायी आदि भी अपने कर्त्तव्यों के प्रति उत्तरदायित्व की भावना से युक्त हों। लोक कार्यालयों को एक ट्रस्ट के रूप में समझे जाने की आवश्यकता है।