राजनैतिक भ्रष्टाचार को प्रभावशाली ढंग से रोकने के लिये किन संवैधानिक (Constitutional / संस्थागत (institutional / प्रशासनिक (Administrative) उपायों की आवश्यकता है?
26 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नमहात्मा गांधी द्वारा 1925 में ‘यंग इंडिया’ अखबार में ‘सात सामाजिक पाप’ का जिक्र किया गया था जिनमें से एक बिना सिद्धांतों की राजनीति भी है। वर्तमान में, राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार गहन चिंता का विषय है जो अमीरी और गरीबी की बढ़ती खाई का एक प्रमुख कारण भी है। खुशहाली और समानता की तलाश में राजनैतिक रूप से भ्रष्ट शासन को एक कमजोर कड़ी माना जाता है।
हर दिन बढ़ते इस राजनैतिक भ्रष्टाचार को दूर करना एक नैतिक अनिवार्यता ही नहीं है, बल्कि किसी भी देश को दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ गठजोड़ के लिये एक आर्थिक आवश्यकता भी है। भ्रष्ट राजनीति के द्वारा ही प्रशासन तथा शासन के अन्य महत्त्वपूर्ण तंत्र भ्रष्ट हो जाते हैं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ती है।
शासन के किसी अन्य मुद्दे की अपेक्षा भ्रष्टाचार की समस्या का हल अधिक सर्वांगीण होना चाहिये। ऐसी सभी कार्य-पद्धतियों, कानूनों और विनियमों को समाप्त किया जाना चाहिये जिनसे भ्रष्टाचार फैलता है और व्यवस्था के कुशल संचालन में बाधा पड़ती है। सार्वजनिक जीवन में हमारे राजनेताओं के लिये नैतिकता के कड़े मानदंड स्थापित किया जाना जरूरी है। ई-गवर्नेंस के माध्यम से सर्वांगी परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किए जाने की आवश्यकता है। शासन की एक ईमानदार व्यवस्था बेईमान व्यक्तियों को हटा देगी। ग्लैडस्टोन ने कहा भी है- सरकार का उद्देश्य लोगों को अच्छा काम करना आसान कर देना तथा बुरा काम करना कठिन कर देना होता है। ब्रिटेन की टोनी ब्लेयर की सरकार में ऐसे तमाम मंत्रियों को त्यागपत्र देना पड़ा था जिन्होंने अपने छोटे-छोटे व्यक्तिगत स्वार्थों के लिये अपने पद का दुरुपयोग किया था। भ्रष्टाचार के आरोपी राजनेताओं को कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से दंडित किया जाना चाहिये जिससे की एक सार्वजनिक उदाहरण कायम किया जा सके। बिगड़ती हुई लोकतांत्रिक राजनीति की संघर्षमय परिस्थितियों के बीच जहाँ हमारे राजनेता अपने दोषों के बचाव के लिये लोकतंत्र के ही विभिन्न संस्थानों पर दोष मढ़ते नजर आते हैं और संविधान का अनुच्छेद 311 कई बार बेईमान व्यक्तियों द्वारा दुरुपयोग में लाया जा रहा है वहाँ इस बात की आवश्यकता है कि हमारे राजनेताओं में वित्तीय ईमानदारी से ज्यादा जोर सत्यनिष्ठता और नैतिकता पर दिया जाए जिनके स्वभाव में ही पारदर्शिता, खुलापन, निर्भीकता, निष्पक्षता और न्यायपूर्णता का समावेशन किया जाए। महज कानूनी नियम और प्रावधान राजनैतिक भ्रष्टाचार को मिटाने के लिये अपर्याप्त हैं। महान चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने सदाचार को अच्छे शासन और शांति की आधारशिला माना है एक अच्छा शासक ध्रुव तारे के समान होता है जो स्वयं ईमानदारी का उदाहरण अपने अन्य समकक्षों में पेश करता है। आवश्यकता है कि हमारे राजनेता अपने अधिकारों का अनुभव करके अपने जिम्मेदारियों का ईमानदारीपूर्वक निर्वहन करें, जवाबदेही और उत्तरदायित्व की भावना से युक्त हों। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1947 में अब तक तमाम संशोधन किए जा चुके हैं, परंतु कुछ अन्य ऐसे सुधारों की आवश्यकता है जिससे रिश्वत के लेन-देन की संस्कृति और राजनीतिक व्यक्तियों के साथ ही अन्य महत्त्वपूर्ण संस्थानों की मिली-भगत को खत्म किया जा सके। सूचना का अधिकार अधिनियम, सूचना व संचार की विभिन्न तकनीकें तथा घोटालों व भ्रष्टाचार की सूचना देने वाले व्हिसल-ब्लोअर को सुरक्षा देकर हम बढ़ते राजनीतिक भ्रष्टाचार को कम कर सकते हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अक्तूबर 2003 में ‘संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन (United Nation Convention)’ को अपना लिया जिसमें ए.डी.बी.ओ.ई.सी.डी. अन्तर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक कार्यवाही योजना के माध्यम से भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक जंग छेड़ी गई जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किया है।