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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल के वर्षों में न्यायपालिका की नैतिकता में गिरावट देखने को मिली है। इसमें कौन-कौन से नैतिक मुद्दे शामिल हैं? एक न्यायाधीश में किन नैतिक मूल्यों का होना आवश्यक है? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायाधीशों के संबंध में जारी आचरण संबंधी गाइडलाइन की पर्याप्तता का मूल्यांकन कीजिये।

    09 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा : 

    • भूमिका।
    • न्यायपालिका से जुड़े नैतिक मुद्दों को बताएँ।
    • एक न्यायाधीश के लिये आवश्यक नैतिक मूल्यों का उल्लेख करें।
    • न्यायाधीशों के लिये न्यायालय द्वारा जारी गाइडलाइन की पर्याप्तता के संबंध में तर्क दें।
    • निष्कर्ष।

    लोकतंत्र में न्यायपालिका संवैधानिक अधिकारों और दायित्त्वों के अभिभावक व संरक्षक के रूप में कार्य करती है।

    इन उत्तरदायित्त्वों को पूरा करने के लिये न्यायालय का उच्च नैतिक मूल्यों से युक्त होना आवश्यक है किंतु हाल में न्यायिक प्रणाली में कुछ नैतिक मुद्दे उभर कर आए है। इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं- भ्रष्टाचार, कॉलेजियम व्यवस्था का दुरुपयोग, न्याय में देरी, शक्तिशाली लोगों के पक्ष में निर्णय, प्रसिद्धि पाने के लिये न्यायिक सीमा क्षेत्र से बाहर जाकर निर्णय देना और पूर्वाग्रह के प्रभाव में निर्णय देना आदि।

    इन नैतिक मुद्दों को प्रभावी गाइडलाइन के क्रियान्वयन, पारदर्शिता और जवाबदेही के उपायों, कॉलेजियम व्यवस्था की समीक्षा करने तथा संविधान और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को शामिल करते हुए हल किया जा सकता है।

    इसके अलावा, सर्वोच्च आवश्यकता है एक न्यायाधीश का नैतिक मूल्यों से युक्त होना। एक न्यायाधीश में निम्न नैतिक मूल्य होने आवश्यक हैं:

    • एक न्यायाधीश को सभी लोगों के संदर्भ में निष्पक्ष होना चाहिये। यदि किसी मामले में उसका हित जुड़ा हो, तो उसे निर्णय नहीं करना चाहिये।
    • न्यायाधीश को न्याय का संचालन करने में भय नहीं होना चाहिये। उसे राज्य या राजनीतिक परिणामों से परे कानून का पालन करना चाहिये।
    • संबंधियों और परिचितों, विवाद के पक्षों तथा उनके वकीलों से दूरी बनाए रखनी चाहिये। न्यायाधीशों को उनके दृष्टिकोण के संदर्भ में सतर्क रहना चाहिये।
    • सामाजिक गतिविधियों में अधिक सक्रियता और भागीदारी से परहेज करना चाहिये।
    • मीडिया प्रचार से बचना चाहिये।
    • न्यायाधीशों को वकीलों के विवेकपूर्ण रणनीति का सहयोगी नहीं बनाना चाहिये। यह न्यायाधीश का कर्त्तव्य है कि वकील जानबूझकर आदलत की कार्यवाही को विलम्बित न करे।
    • उपर्युक्त नैतिक मूल्यों के वास्तविक क्रियान्वयन हेतु ही 1997 में 16 प्वॉइंट में कोड ऑफ कंडक्ट जारी किया गया। जिसमें निष्पक्षता, गैर भागीदारी, कार्यालय की गरिमा, लाभों की प्राप्ति पर अकुंश, पूर्वाग्रह रहित जैसे मूल्य शामिल थे।

    यद्यपि इस कोड ऑफ कंडक्ट के फलस्वरूप न्यायपालिका में नैतिकता के स्तर में वृद्धि हुई है और न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को बनाए रखने में मदद मिली है किंतु फिर भी ये पूर्णतः अपने उद्देश्यों में सफल नहीं रहे हैं अनेक बार भ्रष्टाचार के मुद्दे उभरे हैं। हाल में कर्नाटक के एक पूर्व न्यायाधीश को सजा सुनाई गई जो इस की कमियों को दर्शाता है।

    अतः न्यायापालिका के लिये एक सुस्पष्ट कोड ऑफ कंडक्ट और कोड ऑफ एथिक्स की आवश्यकता है इसके अलावा भ्रष्टाचार रोकथाम और निवारण अधिनियम, 1988 की प्रभावशीलता को बढ़ाया जाना चाहिये। तभी न्यायपालिका संवैधानिक प्रावधानों की प्राप्ति का वाहक बन सकेगी।

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