वैश्विक कृषि निर्यात में भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हुए बताइये कि भारत को अपनी कृषि निर्यात नीति में कौन से बदलावों की आवश्यकता है?
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में नई कृषि निर्यात नीति की घोषणा को स्पष्ट करें।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में वैश्विक कृषि निर्यात में भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हुए भारतीय कृषि निर्यात नीति में आवश्यक बदलावों की चर्चा करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री ने नई कृषि निर्यात नीति को बहुत जल्द लागू किये जाने की घोषणा की। भारत पहली बार इस नीति की ओर कदम बढ़ा रहा है। इस नीति के माध्यम से किसान वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे कृषि क्षेत्र में उत्पाद को बाज़ार में ले जाने की रणनीति में एक उल्लेखनीय बदलाव आएगा।
वैश्विक कृषि निर्यात में भारत की स्थिति
- भारत दुनिया में कृषि उत्पादों के 15 प्रमुख निर्यातकों में से एक है। यह देश में चावल, माँस, मसाले, कच्चा कपास और चीनी जैसे कुछ कृषि वस्तुओं में एक महत्त्वपूर्ण निर्यातक के रूप में उभरा है। भारत ने बासमती चावल, ग्वार गम और अरंडी के तेल की तरह कुछ विशिष्ट कृषि उत्पादों में निर्यात प्रतिस्पर्द्धा विकसित की है।
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत काम करने वाले डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलीजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स (DGCIS) के आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2016-17 में भारत से कृषि एवं सहायक उत्पादों का निर्यात 25 प्रतिशत कम होकर 24.69 अरब डालर रह गया, जबकि वित्त वर्ष 2014 में यह आँकड़ा 32.95 अरब डालर था।
- इसके उलट इस दौरान इन उत्पादों का कुल आयात 13.49 अरब डालर से बढ़कर 23.20 डालर हो गया।
- कृषि वस्तुओं का वैश्विक निर्यात 1.4 बिलियन डालर है जिसमें भारत का हिस्सा लगभग 2.2 प्रतिशत है। भारत से निर्यात होने वाली प्रमुख कृषि वस्तुएँ बासमती चावल (लगभग 6 बिलियन डालर), समुद्री उत्पाद तथा भैंस का मांस (लगभग 4 बिलियन डालर) हैं।
क्या बदलाव किये जाने की आवश्यकता है?
- पहला बदलाव जो आवश्यक है, वह मनोदशा से संबंधित है। उपभोक्ताओं द्वारा किसानों का समर्थन करने के लिये बाज़ार की कीमतों को दबाने की बजाय, सरकार को बिना शर्त आय हस्तांतरण के ज़रिये उनकी रक्षा करनी चाहिये।
- दूसरा, पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करते समय नीति निर्माताओं को कृषि निर्यात का समर्थन करना चाहिये। समुद्री उत्पाद, माँस, तेल, मूँगफली, कपास, मसाले, फल और सब्जियाँ पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न नहीं करती हैं, चावल के निर्यात का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
- पंजाब या हरियाणा में एक किलोग्राम चावल पैदा करने के लिये सिंचाई हेतु लगभग 5000 लीटर पानी की ज़रूरत होती है। इसके कारण भूमिगत जल के दोहन से भूजल तालिका में 70 से 110 सेमी/वर्ष तक की भारी गिरावट आई है। इस क्षेत्र द्वारा बड़ी मात्रा में चावल का निर्यात, अरबों घन मीटर पानी के निर्यात के समान है। इसे सुधारने का सबसे अच्छा तरीका है कि धीरे-धीरे बिजली और सिंचाई सब्सिडी को चरणबद्ध करना होगा।
- तीसरा, सरकार को कुशल वैश्विक मूल्य श्रृंखला विकसित करनी होगी और सभी राज्यों में भूमि पट्टा नीति को उदार बनाना होगा। इसे अनुबंध-कृषि के माध्यम से दीर्घकालिक आधार पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- निर्यातक और प्रोसेसर को किसान-उत्पादक संगठनों (FPO) से सीधे खरीद के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। निजी क्षेत्र ऐसे मूल्य श्रृंखला बनाने में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन इसे संस्थागत सुधारों द्वारा सक्षम किया जाना चाहिये। इन निवेशों का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव हो सकता है।
- इनमें से अधिकतर सुधार राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। यदि सरकार इन सुझावों को अमल में लाती है, तो कृषि निर्यात बढ़ेगा और ऐसे में किसानों की आय भी बढ़ेगी।
- लेकिन 2022-23 तक 60 अरब डालर या 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करना है तो यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सुधार कितने व्यापक हैं और इनका कार्यान्वयन कितना कुशलता पूर्वक किया जाता है। अब तक सरकार का रिकॉर्ड बहुत आशाजनक नहीं रहा है।
एपीडा ने खराब होने वाली निर्यातोन्मुख सामग्री के हवाई परिवहन पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दर को मौजूदा 18 फीसदी से कम कर 5 फीसदी करने की मांग की है, इस पर भी विचार होना चाहिये। जब तक इन मुद्दों को हल नहीं किया जाता कृषि निर्यात प्रभावित होता रहेगा।