नीचे नैतिक दार्शनिकों/विचारकों के दो अवतरण दिये गए हैं। प्रकाश डालिये कि इनमें से प्रत्येक का वर्तमान संदर्भ में आपके लिये क्या महत्त्व है? (a) दूसरों पर वह कभी न थोपो, जो तुम अपने लिये नहीं चुनोगे - कन्फ्यूशियस ।(b) मानवता की पहली शर्त है- जरा-सी विनयशीलता तथा व्यक्ति के आचरण के सही होने के बारे में जरा-सा संकोच और जरा-सी ग्रहणशीलता - गांधीजी।
23 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न(a) दूसरों पर वह कभी न थोपो, जो तुम अपने लिये नहीं चुनोगे - कन्फ्यूशियस ।
कन्फ्यूशियस का यह कथन ‘गोल्डन रूल’ से संबंधित है। यह नियम कहता है कि हर व्यक्ति को दूसरे के साथ दयालुता का व्यवहार करना चाहिये। प्रत्येक मानव को दूसरे के द्वारा दयालुता व परवाह का व्यवहार किया जाना पंसद है। यह नियम स्वतः ही नैतिक व्यवहार उत्पन्न करता है।
लेकिन व्यावहारिक रूप से लोगों की रुचियाँ, ज़रूरतें और अभिवृत्तियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। ऐसे में एक व्यक्ति के लिये यह मुश्किल हो सकता है कि वह कैसा व्यवहार करे। अतः ऐसी स्थिति में व्यक्ति को वही व्यवहार करना चाहिये, जो वह चाहता है कि लोग उसके साथ करें।
वर्तमान में इसका अत्यंत महत्त्व है। बढ़ता धार्मिक उन्माद, लैंगिक भेदभाव, समाज के कमज़ोर और पिछड़े वर्ग पर अत्याचार, कार्यस्थल पर अमानवीय परिस्थितियाँ, भ्रष्टाचार आदि मुद्दे हैं, जोकि ‘गोल्डन रूल’ से दूर किये जा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, समाज में हर कोई दहेज़ लेने और देने का विरोध करता है किंतु जब खुद की बारी दहेज़ लेने की आती है, तो वह उसको सहर्ष स्वीकार करता है।
इसी प्रकार जब समाज में उच्च वर्ग द्वारा पिछड़ी जातियों का शोषण किया जाता है, तो वह इस पर गर्व महसूस करता है किंतु जब वह स्वयं ऐसी स्थिति से गुजरता है तो यह उसके अहम् को चोट पहुँचाने वाला होता है, जो अंततः बुरे परिणाम जैसे हत्या के रूप में सामने आता है।
अतः आवश्यक है कि व्यक्ति दूसरों के विचारों, व्यवहारों को उतना ही महत्त्व दे जितना कि वह स्वयं अपने लिये चाहता है।
(b) मानवता की पहली शर्त है- जरा-सी विनयशीलता तथा व्यक्ति के आचरण के सही होने के बारे में जरा-सा संकोच और जरा-सी ग्रहणशीलता - गांधीजी।
गांधी जी का यह कथन मानव के लिये विनयशीलता के महत्त्व को बताता है। विनयशीलता से तात्पर्य है कि हमें स्वंय को दूसरों से ऊँचे पायदान पर नहीं रखना चाहिये, चाहे हम योग्यताओं और उपलब्धियों में बहुत ज्यादा ही क्यों न हों।
विनयशीलता का अर्थ स्वयं को तुच्छ मानना या अपने गुणों, योग्यताओं और उपलब्धियों को नकारना नहीं है, बल्कि यह एक सद्गुण है जो मानव में उच्च नैतिकता स्थापित करने का कार्य करता है।
परंपरागततौर पर दंभ, गर्व और अकड़ को विनयशीलता के विपरीत अवगुण माना जाता रहा है। दंभ से आडंबर या दिखावा, घमण्ड और अन्यों को नीच समझने जैसे भाव आते हैं। इससे अपने को श्रेष्ठ समझने का भाव पैदा होता है, जिसे अन्य लोग असहज पाते हैं। विशेष रूप से शक्ति संपन्न लोग आत्म-संतुष्ट हो जाते हैं तथा आसानी से चापलूसी के आदी हो जाते हैं। जो लोग स्वंय का अच्छा सोचते हैं, वे दूसरों का बुरा सोचने लगते हैं। विनम्रता और विनयशीलता का भाव आडंबर और स्वयं को सही समझने जैसे भावों के सुधारक का काम करता है।
वर्तमान प्रशासन और राजनीति में यह अत्यंत महत्त्चपूर्ण है। जब तक इन दोनों से जुड़े लोग विन्रमता का गुण ग्रहण नहीं कर लेते, वे आम आदमी की समस्याओं के लिये चिंता और विचार प्रदर्शित नहीं कर पाएंगे। इन्हें अपना कर्त्तव्य लोगों की सेवा समझना चाहिये। उन्हें स्वयं को शासक या मालिक नहीं समझना चाहिये। वे उस शक्ति के न्यासी हैं, जो अंततः लोगों से ही प्राप्त होती है।