दक्षेस की अपेक्षा बिम्सटेक ने सदस्य देशों को एक बेहतर ‘विकास मंच’ प्रदान किया है। कथन को स्पष्ट करते हुए बताएँ कि यह भारत को विकास के कौन-से नए अवसर मुहैया करा सकता है? इस संगठन के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर भी चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में बिम्सटेक के माध्यम से भारत को उपलब्ध विकास के अवसरों को स्पष्ट करते हुए इसके समक्ष उपस्थित चुनौतियों की चर्चा करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (दक्षेस) की स्थापना सन 1985 में व्यापार, निवेश तथा संपर्क द्वारा क्षेत्र के लोगों की सामाजिक-आर्थिक दशा में उत्थान के लिये की गई थी। यद्यपि इसने क्षेत्र में विकास एवं आपसी संबंध मजबूत करने हेतु कार्य किये, परंतु पाकिस्तान की बाधक नीति के कारण यह अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतरने में असफल रहा है। बिम्सटेक की स्थापना 1997 में आर्थिक सहयोग के उद्देश्य से की गई थी। इसके सदस्य राष्ट्र बांग्लादेश, भारत, म्याँमार, थाईलैंड, श्रीलंका, भूटान और नेपाल हैं, जिनमें से पाँच देश सार्क के भी सदस्य हैं।
2016 में इस्लामाबाद में आयोजित होने वाला दक्षेस सम्मेलन भी रद्द हो गया था, इन परिस्थितियों में बिम्सटेक की उपयोगिता ‘विकास मंच’ के तौर पर उभर कर सामने आई है। जिसने भारत के लिये विकास के नए द्वार खोले हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-
- बिम्सटेक मुख्यतः आर्थिक संबंधों, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह तथा आर्थिक एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
- बिम्सटेक के सदस्य राष्ट्रों की समेकित आबादी विश्व की कुल जनसंख्या का 21% है तथा समेकित सकल घरेलू उत्पाद 2-5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में पेट्रोलियम तथा अन्य ऊर्जा के संसाधनों की उपस्थिति पर्याप्त मात्रा में है, जिनका दोहन न केवल भारत को समृद्धि प्रदान करेगा, बल्कि भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा भी प्रदान करेगा।
- इन देशों के निवासी सांस्कृतिक तथा नृजातीय दृष्टिकोण से भारत के काफी निकट हैं, अतः यह भारत में पर्यटन के अवसरों में भी वृद्धि कर सकता है।
- भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा म्याँमार के साथ जुड़ी है तथा सड़क मार्ग से व्यापार हेतु कलादान परियोजना का निर्माण कार्य जारी है, इस स्थिति में भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की समृद्धि के मार्ग खुल सकते हैं।
- बिम्सटेक दक्षिण एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य सेतु है। इसके दो सदस्य राष्ट्र म्याँमार तथा थाईलैंड आसियान के भी सदस्य हैं, अतः यह दो क्षेत्रीय आर्थिक समूहों के मध्य समन्वय स्थापित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- बिम्सटेक राष्ट्रों के साथ सहयोग क्षेत्र में चीन की भूमिका को सीमित रखने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अतः इसके सामरिक लाभ भी हैं।
बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियाँ :
- बिम्सटेक ‘मुक्त व्यापार समझौता’ पर 2004 में हस्ताक्षर किये गए थे, परंतु इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। दक्षिण एशियाई राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था प्रतिरक्षात्मक है, अतः मुक्त व्यापार के उद्देश्य की पूर्ति लगभग असंभव है। गैर-टैरिफ बाधाएँ तथा प्रांतीय स्वायत्तता रियायती शुल्क दरों के लाभ को कम कर देती है।
- सदस्य राष्ट्रों के नागरिकों के बीच एकजुटता तथा सहयोग की भावना विकसित करना भी एक बड़ी चुनौती है।
- बिम्सटेक राष्ट्रों के मध्य अनसुलझे सीमा विवाद, शरणार्थी विवाद तथा नृजातीय तनाव इस समूह के समक्ष चुनौतियाँ हैं, जैसे कि बांग्लादेश तथा म्याँमार के मध्य रोहिंग्या समस्या, नेपाल और भूटान में नागरिकता का मुद्दा तथा म्याँमार एवं थाईलैंड सीमा विवाद।
- इस संगठन का प्रबंधन एवं कार्यात्मक ढाँचा भी महत्त्वपूर्ण चुनौती है। साथ ही अन्य क्षेत्रीय संगठन जैसे कि आसियान, सार्क, एशिया को-ऑपरेटिव डायलॉग, मेकांग गंगा को-ऑपरेशन इत्यादि से भी इसे खतरा है, क्योंकि सदस्य राष्ट्रों के बिम्सटेक की तुलना में इनसे ज्यादा आर्थिक हित जुड़े हुए हैं।
भारत ने बिम्सटेक के साथ संबंधों को मज़बूती प्रदान करने के लिये 2016 के गोवा ब्रिक्स सम्मेलन में इसके सदस्य राष्ट्रों को आमंत्रित किया था। बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के आर्थिक एकीकरण हेतु बिम्सटेक अत्यंत महत्त्वपूर्ण संगठन है।