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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विशिष्ट परिस्थितियों में 24 सप्ताह बाद भी गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान की है। क्या ऐसी स्थिति में भ्रूण के अधिकारों का हनन हो सकता है? क्या माता के प्रजनन की स्वायत्तता का अधिकार भ्रूण के अधिकार से ऊपर है? नैतिक समस्याओं को शामिल करते हुए मूल्यांकन करें। 

    10 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • भ्रूण के अधिकार के संबंध में लिखें।
    • माता के प्रजनन के अधिकार और भ्रूण के अधिकार की तुलना करते हुए निष्कर्ष लिखें।

    अधिकार कानूनी, सामाजिक, स्वतंत्रता या नैतिकता के नैतिक सिद्धांत है। भारतीय संविधान ‘प्राण और दैहिक स्वतंत्रता’ का प्रावधान करता है, जिसमें न्यायालय ने माता के प्रजनन के अधिकार को स्वीकारा है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशिष्ट स्थिति में 24 सप्ताह बाद गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान की। 

    ऐसी स्थिति में माता के अधिकार और भ्रूण के अधिकार से जुड़े नैतिक मुद्दे उभरे हैं।

    • भ्रूण के अधिकारः मेडिकल साइंस के अनुसार, 24 सप्ताह के बाद एक भ्रूण जैविक मानव प्रजाति का सदस्य होता है। जिसका अर्थ है एक आनुवंशिक कोड, सोचने की क्षमता आदि का विकसित होना।
    • यदि गर्भपात कराया जाता है तो निश्चित ही भ्रूण के अधिकारों का हनन होता है किंतु यदि शुद्ध नैतिक सिद्धांतों और विशिष्ट मेडिकल स्थिति में, जैसे कि भ्रूण का विकार युक्त होना, जो माता के जीवन को खतरा पैदा कर सकता है, गर्भपात कराना नैतिक दृष्टि से उचित है।

    यदि माता और भ्रूण के अधिकारों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो इसे निम्नलिखित स्थितियों से समझा जा सकता हैः

    1. जब दोनों के अधिकार समान हैं: कुछ लोगों का मत है कि जीवन का अधिकार सदैव किसी व्यक्ति के समानता का अधिकार या अपने शरीर पर नियंत्रण से उच्च होता है। इसके अलावा, चूँकि एक भ्रूण 24 सप्ताह के बाद जैविक मानव जीवन में प्रवेश कर जाता है। अतः भ्रूण का अधिकार, माता के अधिकार के समान स्थिति प्राप्त कर लेता है।
    2. जब माता के अधिकार, भ्रूण के अधिकार से ऊपरः चूँकि एक माता को अपने शरीर के साथ क्या करना है, इसकी स्वतंत्रता प्राप्त है। साथ ही जब भ्रूण के कारण असामान्य स्थिति उत्पन्न हो जाती है और उससे माता के जीवन को खतरा हो सकता है, तो गर्भपात कराया जा सकता है। ऐसी स्थिति में भ्रूण के अधिकार गौण हो जाते हैं।

    इस तरह गर्भपात एक अत्यंत संवेदनशील नैतिक मुद्दा है, जिस पर पर्याप्त अनुसंधान किया जाना चाहिये। यदि एक महिला को गर्भपात का अधिकार प्राप्त होता है तो यह लैंगिक समानता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अवैध गर्भपात और सही विकल्प चुनने में मदद करेगा।

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