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प्रश्न :
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में अंतर को स्पष्ट करते हुए बताएँ कि किन संदर्भों में उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता अधिक विस्तृत है?
06 Feb, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में विद्यमान अंतरों को स्पष्ट करें
- बताएँ कि किन संदर्भों में उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता अधिक विस्तृत है।
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों ही भारत की न्यायिक व्यवस्था के आधारभूत स्तंभ रहे हैं। इन्हें देश में न्यायिक व्यवस्था को बनाए रखने, व्यक्ति के मौलिक अधिकारों तथा संविधान के संरक्षण का दायित्व प्रदान किया गया है। इन्हीं दायित्वों के निर्वहन हेतु सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 32 तथा उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकारिता प्रदान की गई है । इन दोनों के रिट अधिकारिता में निहित अंतर को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है।
- उच्चतम न्यायालय की रिट अधिकारिता का प्रभाव संपूर्ण भारत में है जबकि उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता का विस्तार संबंधित राज्य की सीमा तक ही है।
- उच्चतम न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिषेध तथा अधिकार पृच्छा से संबंधित रिट जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य विषयों के संदर्भ में भी रिट जारी कर सकता है।
- उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के विरुद्ध प्रतिषेध तथा उत्प्रेषण का रिट जारी कर सकता है परंतु उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय के विरुद्ध ऐसा नहीं कर सकते हैं।
- उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल किए गए रिट की सुनवाई से इनकार नहीं कर सकता जबकि अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा रिट सुनवाई के लिये स्वीकार किया जाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है।
प्रभाव क्षेत्र की दृष्टि से उच्च न्यायालय के रिट अधिकार अधिक व्यापक हैं। उच्चतम न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के संरक्षण हेतु रिट जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय अन्य वैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिये भी रिट जारी कर सकते हैं।
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