करुणा से आप क्या समझते हैं? एक प्रशासक के लिये इस गुण के महत्त्व को रेखांकित कीजिये।
09 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
प्रश्न-विच्छेद
हल करने का दृष्टिकोण
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करुणा को अंतरात्मा का संरचनात्मक गुण कहा गया है। सामान्य भाषा में इसे दया, प्रेम और संवेदना कहा जाता है जो कि काफी हद तक समानुभूति से साम्य रखता है। कुछ मायनों में यह समानुभूति से भी एक कदम आगे प्रतीत होता है जिसमें दूसरों की तकलीफों/दुखों को समझने के साथ ही उन्हें उस दुख या तकलीफ से मुक्ति दिलवाने की तीव्र इच्छा विद्यमान होती है।
भारतीय दर्शन में करुणा का बोध उन सब विकृतियों को पैदा होने से रोकता है जो कि दर्शन में विवेक और बुद्धि की जिम्मेदारियाँ हैं, अर्थात् करुणा की मात्रा मनुष्य में लोभ, मोह और लालच को घटाकर उसे निस्पृह और निष्पक्ष बनाती है। महापुरुषों की यही करुणा उनके अवतारों की कहानी बन जाती है। बुद्ध ने भी करुणा को मनुष्य का पहला और अंतिम गुण बताया है। सामान्य जीवन में एक करुणामय व्यक्ति के व्यक्तित्व में दूसरों को कष्ट से मुक्ति दिलाने का भाव होता है। वह दूसरों की मदद इसलिये नहीं करता कि यह उसके लिये बाध्यता है बल्कि वह इसे अपनी इच्छा से करता है। वह समझता है कि शायद वे लोग उतने भाग्यशाली नहीं हैं जितना कि वह, इसलिये वह अपनी दयालुता के बदले किसी से कुछ पाने की उम्मीद नहीं करता। यह सहज दयाभाव ही मनुष्य को पशुता से ऊपर उठाता है और वह पशुओं से भी प्यार करने लगता है।
प्रशासन के क्षेत्र में करुणा एक अभिवृत्ति है जो एक लोक सेवक को जनता से जोड़ने तथा उसे लोक सेवा का अर्थ समझने में सहायता करती है। कठोर-से-कठोर और क्रूर-से-क्रूर कार्य करते समय भी करुणा एक कवच बनकर किसी भी प्रशासक की रक्षा करती है। यदि एक प्रशासक करुणा को मानव गुण के रूप में धारण कर लेता है, तो उसे किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं रहेगी।
अतः करुणा एक ऐसा गुण है जो किसी मनुष्य को उसकी चेतना के सामान्य स्तर से ऊपर उठाकर उसे जनहित में कार्य करने को प्रेरित करता है।