भारत में यातना निरोधक कानून की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए इस विषय पर विधि आयोग की प्रमुख अनुशंसाओं की चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- भारत में यातना निरोधक कानून की आवश्यकता को स्पष्ट करें।
- इस विषय पर विधि आयोग की अनुशंसाओं की चर्चा करें।
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यातना एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को शारीरिक अथवा मानसिक रुप से उत्पीड़ित किया जाता है।भारत में यातना निरोधक कानून की आवश्यकता को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
- भारतीय लोकतंत्र में बहुमत प्राप्त दल की सरकार बनती है। ऐसे में यह संभव है कि सरकार बनने पर बहुमत प्राप्त दल अन्य समूहों का उत्पीड़न करे।
- इसके अलावा अल्पसंख्यकों के अधिकार तथा भारतीय विविधता को महत्त्व प्रदान करने की दृष्टि से भी आज यातना निरोधक कानून आवश्यक है।
- भारत में AFSPA जैसे निरोधक कानून लागू हैं, जिनकी आड़ लेकर आम नागरिकों का उत्पीड़न किया जा सकता है।
- NHRC के अनुसार मौजूदा प्रावधानों के तहत पुलिस की हिरासत के दौरान हुई हिंसा की रिपोर्ट करना आवश्यक नहीं है। इससे पुलिस की हिरासत में यातना की संभावना बढ़ती है।
- यातना निरोधक कानून सुदृढ़ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिये भी आवश्यक हैं। इस कानून के अभाव में भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में प्रत्यर्पण निश्चित करने में कठिनाई होती है क्योंकि इस कानून के अभाव में अन्य देश के आरोपी व्यक्ति भारत में यातना का सामना कर सकते हैं। उदाहरण के लिये डेनमार्क ने भारत में यातना के जोखिम के कारण पुरुलिया शस्त्र मामले में किम डेवी के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया था।
- वैश्विक रूप से मानवतावाद को समर्थन देने की दृष्टि से भी यातना निरोधक कानून भारत के लिये आवश्यक है।
इसी संबंध में विधि आयोग ने भारत सरकार से ‘यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन अगेंस्ट टार्चर’ की पुष्टि करने तथा एक यातना निरोधक कानून के निर्माण की अनुशंसा की है। इनकी महत्वपूर्ण अनुशंसाओं को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
- आईपीसी में एक नई धारा 114B को शामिल किया जाए जिसमें यह प्रावधान किए जाने की आवश्यकता है कि पुलिस हिरासत में व्यक्ति के घायल होने पर पुलिस को दोषी माना जाए। किसी मुकदमे में विचाराधीन कैदी को लगी चोटों से संबंधित स्पष्टीकरण का दायित्व पुलिस पर होना चाहिये।
- मुआवजा और पुनर्वास IPC की धारा में संशोधन करके वीडियो को न्याय संगत मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिये।
- कई बार संरक्षण के अभाव में यातना से पीड़ित व्यक्ति अथवा इसके चश्मदीद गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं। ऐसे में यातना के पीड़ितों तथा गवाहों को संरक्षण प्रदान करने के लिये प्रभावी तंत्र को लागू किया जाना चाहिये।
यातना निरोधक कानून ना केवल संविधान के अनुच्छेद-21के अनुकूल है बल्कि यह मानव अधिकारों की रक्षा के लिये भी आवश्यक है ऐसे में यातना निरोधक कानून का निर्माण सरकार का दायित्व है।