भावनाओं का प्रबंधन किसी लोक सेवक की सफलता या असफलता का आधार है। स्पष्ट कीजिये।
11 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
प्रश्न-विच्छेद
हल करने का दृष्टिकोण
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भावनाओं प्रबंधन भावनात्मक बुद्धिमत्ता का सबसे जटिल पक्ष है। इस क्षमता को साध लेना इस बात का प्रमाण है कि व्यक्ति भावनात्मक बुद्धिमत्ता के ऊँचे स्तर पर है। इसके दो पक्ष हैं- (i) भावनाओं को अभिव्यक्त करने से पहले ही प्रबंधित करना (ii) भावनाओं की अभिव्यक्ति को प्रबंधित करना। किसी लोक सेवक में इस क्षमता को होना अनिवार्य है।
वर्तमान में सिविल सेवाओं में तनाव का स्तर ऊँचा है जिसका प्रमुख कारण कल्याणकारी राज्य की निरंतर बढ़ती हुई अपेक्षाएँ, गठबंधन की राजनीति के कारण परस्पर विरोध तथा अतिशय दबाव, सीमित बजट किंतु ऊँचे उद्देश्य, मीडिया का दबाव, सिविल सोसायटी के आंदोलन इत्यादि हैं। भावनात्मक प्रबंधन की क्षमता रखने वाले प्रशासक में एक सामर्थ्य होती है जिससे वह विवादों का रचनात्मक ढंग से समाधान कर सकता है।
एक प्रशासक को प्रायः ऐसे कर्मचारियों के साथ काम करना होता है जिनके चयन में उसकी कोई भूमिका नहीं होती है। अतः दूसरे के संवेगों और उनकी अभिव्यक्तियों (क्रोध आदि) को व्यक्तिगत स्तर पर न लेकर अपने व्यवहार को नियंत्रित करना, किसी भी प्रकार की अनिश्चितता अथवा परिवर्तन के साथ अपनी समझ बनाना, निर्णयों को प्रभावित करने वाले नैतिक मूल्यों व विश्वासों को समझना और उनकी पहचान करना, दूसरे व्यक्ति के संवेगों और परिस्थितियों को समझ कर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करना, आदि अनेक ऐसी क्षमताएँ है जिनका विकास करना एक लोक सेवक के लिये आवश्यक है।
संवेगात्मक बुद्धि के आधार पर अपने मनोवेगों को सही से जानना समझना और उन्हें काबू में रखकर जनता की समस्याओं के साथ-साथ अपने अधीनस्थों और वरिष्ठ अधिकारियों के व्यवहार पर संतुलित प्रतिक्रिया देना प्रशासन जैसे कठिन तथा बहुआयामी क्षेत्र में किसी लोक सेवक की धारणीयता को बताता है।
अतः स्पष्ट है कि भावनात्मक प्रबंधन के माध्यम से एक लोक सेवक जहाँ अपने व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ प्रशासन के क्षेत्र में भी सफलता प्राप्त करता है वहीं, इसके न होने से वह दोनों क्षेत्रों में से किसी में भी सफल नहीं हो सकता।