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प्रश्न :
गांधी के नैतिक विचार वर्तमान में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने गांधी युग में थे। टिप्पणी कीजिये।
14 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
प्रश्न-विच्छेद
- गांधी के नैतिक विचारों की वर्तमान में प्रासंगिकता पर टिप्पणी करनी है।
हल करने का दृष्टिकोण
- प्रभावी भूमिका लिखते हुए गांधी के दर्शन तथा उनकी विचारधारा को बताएँ।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में गांधी के नैतिक विचारों को बताते हुए वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता के विषय में लिखें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
महात्मा गांधी नव्य वेदांत दर्शन की परंपरा में आने वाले प्रमुख विचारक हैं। उन्होंने सभी विचारधाराओं, दर्शनों को परखा और उनका सार ग्रहण किया, इसलिये उनके दर्शन पर अनेक विचारधाराओं का प्रभाव दिखाई देता है।
महात्मा गांधी पर सर्वाधिक प्रभाव उपनिषद् तथा गीता का है। उपनिषदों से उन्होंने ‘ईशावास्यमिदं सर्वं’ मंत्र ग्रहण किया तो गीता से स्वधर्म की अवधारणा ली। बौद्ध तथा योग दर्शन के प्रभाव के साथ ही उन पर जैन धर्म के पंचव्रतों का भी गहरा प्रभाव दिखाई देता है। गांधी ने जैन धर्म के पंचव्रतों पर अपने विचारों के साथ-साथ अन्य नैतिक विचारों का भी प्रतिपादन किया जिनमें—
- साधन-साध्य संबंध,
- हृदय परिवर्तन,
- प्रकृति,
- धर्म और राजनीति का संबंध,
- नैतिक अर्थव्यवस्था,
- सर्वोच्च शुभ,
- राज्य संबंधी विचार,
- धर्मनिरपेक्षता एवं सर्वधर्म समभाव,
- वर्ण-व्यवस्था संबंधी विचार और
- जातिगत भेदभाव का विरोध शामिल हैं।
गांधी के विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता की यदि बात की जाए तो आज के जैव रासायनिक तथा परमाणु हथियारों के युग में उनका अहिंसा का आदर्श अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। प्रकृति को गांधीवादी नजरिये से देखने पर वैश्विक तापन जैसी समस्याएँ कम हो सकती हैं। प्रत्येक व्यक्ति का स्वधर्म भिन्न है। यदि स्वधर्म का पारंपरिक अर्थ न लिया जाए तो हर व्यक्ति की प्रतिभा और रुचियाँ अलग-अलग हैं। व्यक्ति को अपने स्वधर्म के अनुसार ही काम करना चाहिये अर्थात् प्रतिभा और रुचि के साथ काम करना चाहिये, इससे रोजगार से असंतुष्टि की समस्या समाप्त हो जाएगी। शक्ति के विकेंद्रीकरण का सिद्धांत उनके राज्य को कम शक्तियाँ देने के विचार की वकालत करता है।
उपर्युक्त सकारात्मक पक्ष होने के बावजूद भी गांधी के विचार वर्तमान में अप्रासंगिक हो चले हैं क्योंकि पूंजीवाद आज की स्वीकृत अर्थव्यवस्था है। यदि आज के दौर में गांधी के नैतिक अर्थव्यवस्था के विचार का पालन किया जाए तो विकास की दौड़ में पीछे रह जाएंगे। गांधी ने वर्ण व्यवस्था को गुरुत्वाकर्षण के नियम की तरह प्राकृतिक और सार्वभौमिक माना, जबकि सच यह है कि आज किसी भी रूप में वर्ण व्यवस्था का समर्थन तर्क के आधार पर नहीं किया जा सकता। गांधी का हृदय परिवर्तन का विाचर पर्याप्त नहीं माना जा सकता, क्योंकि जब गांधी जैसा राष्ट्र नायक सवर्ण हिंदुओं का हृदय परिवर्तन नहीं कर सका तो किसी और से ऐसी उम्मीद करना व्यर्थ है। भूमंडलीकरण के दौर में स्वावलंबी ग्रामीण व्यवस्था का रास्ता अव्यावहारिक प्रतीत होता है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि गांधी के नैतिक विचार वर्तमान समय में न तो पूर्णतः प्रासंगिक हैं, न ही पूर्णतः अप्रासंगिक। उनके कुछ विचारों में परिवर्तन बदलते समय की मांग है।
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