'अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता' का क्या अर्थ है? इसके महत्त्व का उल्लेख करते हुए, इस संदर्भ में रोहिंग्या मुद्दे पर चर्चा करें।
09 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर की रुपरेखा :
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अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता का अर्थ, राष्ट्रों के बीच संबंधों के नियमन हेतु नैतिकता या आचार संहिता से है। इसके अंतर्गत वे नैतिक सिद्धांत शामिल हैं जो अनेक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के प्रमुख स्रोत और उनके औचित्य का निर्धारण करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता के एक प्रमुख उदाहरण के रूप में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को देखा जा सकता है, जो किसी नस्ल, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर भेदभाव किये बिना संपूर्ण मानव जाति के मानवीय अधिकार और मौलिक स्वतंत्रता के सम्मान की बात करता है।
मानवीय इतिहास रक्त रंजित रहा है, इसमें युद्ध, आक्रमण, नरसंहार तथा लूटमार आदि शामिल रहे हैं। वर्तमान में भी अनेक मुद्दे जैसे- सिरियाई नागरिक युद्ध, शरणार्थियों से जुड़ा संकट, श्रीलंका का गृहयुद्ध आदि इसके उदाहरण हैं। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरती है।
अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता निम्नलिखित दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैः
यह अंतर्राष्ट्रीय शांति और न्याय के लिये आवश्यक है। इसके उदाहरण के रूप में ‘भारत का पंचशील सिद्धांत’ महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। जब एक राष्ट्र नैतिकता के उच्च मानकों का पालन करता है, तो वह दूसरे देश की ‘संप्रभुता’ का सम्मान करता है। परिणामस्वरूप शांति और न्याय को बढ़ावा मिलता है।
यह मूलभूत मानवाधिकारों, मानव की प्रतिष्ठा व मूल्य, पुरुषों एवं महिलाओं तथा बड़े एवं छोटे राष्ट्रों में विश्वास की पुनः पुष्टि के लिये आवश्यक है।
अधिक स्वतंत्रता की स्थिति में सामाजिक प्रगति तथा जीवन के बेहतर स्तरों का संवर्द्धन आदि नैतिकता से ही संभव है।
भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हेतु अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भाषण की स्वतंत्रता में धर्म, विश्व प्रेस और मीडिया, शिक्षा क्षेत्र, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति, आदान-प्रदान और उत्पाद आदि शामिल हैं। वर्तमान में धार्मिक/सांस्कृतिक उन्माद, सर्वश्रेष्ठ की भावना, विचार अभिव्यक्ति पर प्रहार इस नैतिकता के अभाव के उदाहरण हैं।
पर्यावरण का संरक्षण बिना अतर्राष्ट्रीय नैतिकता के संभव नहीं है। उत्तरदायित्व को दूसरों पर थोपने अथवा न स्वीकार करने की नीति, जैसा कि पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के बाहर होने के निर्णय के रूप में देखा जा सकता है, नैतिकता के अभाव का परिणाम है।
विभिन्न राष्ट्रों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा तथा समानता आधारित विकास को अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता के द्वारा ही स्थापित किया सकता है। सब्सिडी का मुद्दा, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र संघ में कुछ विशिष्ट राष्ट्रों, जैसे- अमेरिका का प्रभुत्व आदि नैतिकता से जुड़े मुद्दे हैं।
हाल में रोहिंग्या से जुड़ा मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। यह विश्व के सबसे अधिक उत्पीडि़त अल्पसंख्यकों में से एक है, जिन्हें संभवतः कानूनी अधिकार तो क्या, मानवाधिकार भी प्राप्त नहीं हैं।
ये म्याँमार के राखिन राज्य से संबंधित हैं। जहाँ म्याँमार की सेना और बौद्ध बहुसंख्यकों ने इनका उत्पीड़न किया है। इन्हें न केवल नागरिकता से वंचित रखा गया है अपितु स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी इन्हें प्राप्त नहीं हैं। इस मामले में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त आंग सान सू की द्वारा चुप्पी साधे रखना, संयुक्त राष्ट्र की विफलता और हाल में भारत से 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमानों के निर्वासन का निर्णय अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
अतः आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जाए।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या मानवीय संवेदना वाली अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने, मानवाधिकारों के प्रति सम्मान बढ़ाने तथा जाति, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर अंतर किये बिना सभी को मूलभूत स्वतंत्रता प्रदान करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता को बनाए रखा जाना आवश्यक है। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब सभी राष्ट्र तथा यूनाइटेड नेशन जैसे संगठन मिलकर उच्च मानकों की स्थापना हेतु कार्य करें।