‘सागर में डूबकर कर्म का रहस्य सीखो, संसार रूपी यंत्र के पहियों से भागो मत, उसके भीतर खड़े होकर देखो कि वह कैसे चलता है, तुम्हें उससे निकलने का मार्ग अवश्य मिलेगा।’ इस कथन के संदर्भ में विवेकानंद के विचारों पर प्रकाश डालिये।
11 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
उत्तर की रूपरेखा
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वेदांत के व्याख्याता और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद 19वीं सदी के भारत के प्रभावशाली चिंतकों में से एक थे। उन्होंने हिंदू धर्म और शंकर के अद्वैत वेदांत की वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक व्याख्या करते हुए भारत में होने वाले नवजागरण को दिशा प्रदान की।
विवेकानंद के अनुसार, विराग की अति हो जाने पर वह निष्ठुर उच्छृंखलता (कर्म न करने के स्थिति में जिम्मेदारी का अभाव) बन जाता है। धर्म एवं तत्त्व ज्ञान के समान भारतीय स्वतंत्रता की प्रेरणा का भी उन्होंने नेतृत्व किया।
स्वामी विवेकानंद ने अद्वैतवाद से सैद्धांतिक मत ‘परम सत्ता एक है’ के आधार पर प्राणिमात्र की आध्यात्मिक समानता के विचार को प्रतिपादित किया। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक असमानताओं और भेदभाव पर प्रहार करते हुए आध्यात्मिक समानता तथा सामाजिक असमानता के विरोधाभास को उजागर किया और इन असमानताओं एवं कुरीतियों का खंडन भी किया। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें धर्म और जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद न रहे। स्वामी विवेकानंद का दर्शन कर्म और शक्ति पर सर्वाधिक बल देता है। विवेकानंद ज्ञान, भक्ति एवं कर्म को अलग-अलग नहीं मानते। वे उन्हें पूर्णता की ओर ले जाने वाले एक मार्ग के तीन खंड मानते हैं।
अतएव ‘उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’। स्वामी जी ने एक समय में एक लक्ष्य तथा उसके प्रति पूर्ण समर्पण को स्वीकारा है और जिम्मेदारी से अपने कर्त्तव्यों के निर्वाह की प्रेरणा दी है।