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प्रश्न :
कांट के नैतिक सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या कीजिये।
21 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
पश्चिमी दर्शन में निरपेक्षवादी या कर्त्तव्यवादी नीतिमीमांसा का चरम विकास कांट के दर्शन में हुआ उसके नैतिक सिद्धांत को निरपेक्ष आदेश का सिद्धांत कहा जाता है। इस सिद्धांत का सार यह है कि नैतिकता न तो मनुष्य की इच्छाओं या भावनाओं से संबंधित होती है और न ही कार्यों के परिणामों से, नैतिकता का एकमात्र संबंध विशुद्ध कर्त्तव्य चेतना से होता है।
निरपेक्ष आदेश के नियमों की चर्चा करते हुए कांट ने चार ऐसे नैतिक नियमों का प्रतिपादन किया है जिनका पालन व्यक्ति को हर स्थिति में करना चाहिये, ये हैं –
(i) सार्वभौमिकता का नियम: इसका अर्थ है कि मनुष्य को सिर्फ ऐसे नियम के अनुसार आचरण करना चाहिये जिसे वह सार्वभौमिक नियम के रूप में स्वीकार करने को तैयार है ऐसे नियम पूर्णतः निष्पक्ष तथा वस्तुनिष्ठ होने चाहिये, किसी मित्र या सगे संबंधी के लिये इनमें थोडा भी परिवर्तन करना अनैतिक है।
(ii) मनुष्य को साध्य मानने का नियम: इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा स्वयं तथा अन्य व्यक्तियों को साध्य के रूप में देखा जाना चाहिये, साधन के रूप में नहीं। साध्य के रूप में देखने का अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति का साधन नहीं बनाया जाना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति समाज में जब कर्त्तव्य चेतना के भाव से दूसरों की मदद करता है तब वह साधन नहीं बनता क्योंकि कर्म करने का निर्णय स्वयं उसने किया है, वह साधन तब बनता है जब किसी विवशता या दबाव में वह दूसरों की इच्छापूर्ति का माध्यम बनता है। इसी तर्क के आधार पर कांट ने दासता, बलात्कार, हत्या, और शोषण जैसे कृत्यों को पूर्णतः अनैतिक माना है।
(iii) स्वाधीनता या स्वायत्तता का नियम: इसका अर्थ है कि सच्ची नैतिकता बाहर से थोपी नहीं जाती बल्कि अंतःप्रेरणा पर आधारित होती है, अगर व्यक्ति नैतिक नियम का पालन किसी भय या प्रलोभन से करता है तो उसका नैतिक मूल्य शून्य हो जाता है। निरपेक्ष आदेश इसलिए निरपेक्ष है कि वह कर्त्तव्य निभाने की अंतःप्रेरणा पर आधारित होता है।
(iv) साध्यों के साम्राज्य का नियम: कांट ने इसमें पहले के तीनों नियमों का समावेश किया है, वह कहता है – “इस प्रकार कार्य करो कि तुम स्वयं को साध्यों के साम्राज्य में नियम बनाने वाला सदस्य समझ सको।” इसका अर्थ है कि व्यक्ति को स्वयं तथा सभी को साध्य समझना चाहिये और चूँकि सभी साध्य हैं इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी कर्त्तव्य चेतना द्वारा समुचित कर्त्तव्यों का निर्धारण कर सके।
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