लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वर्तमान में भारत एक अत्यंत जटिल अर्थव्यवस्था बन चुका है, इसलिये कभी-कभी नियामक और सरकार के बीच निरीक्षण अधिकार को लेकर अतिव्यापन (Overlap) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसी परिप्रेक्ष्य में आरबीआई एक्ट के अनुभाग-7 को स्पष्ट करते हुए सरकार एवं आरबीआई के पक्षों को विस्तारपूर्वक बताएँ।

    06 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    भूमिका में:


    इलाहाबाद उच्च न्यायालय की सुनवाई का एक संक्षिप्त ब्योरा देते हुए और आरबीआई एक्ट के अनुभाग-7 के बारे में बताते हुए उत्तर आरंभ करेंगे-

    भारतीय स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादक संघ केस के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिये गए एक सुझाव में बताया गया था कि सरकार चाहे तो भारतीय रिज़र्व बैंक को आरबीआई एक्ट के अनुभाग-7 के तहत निर्देश दे सकती है।

    विषय-वस्तु में:


    विषय-वस्तु के पहले भाग में हम विवाद की पृष्ठभूमि और आरबीआई एक्ट की धारा-7 पर चर्चा करेंगे-

    इस सुझाव के बाद सरकार द्वारा आरबीआई को लिखे गए तीन पत्रों, जिसमें सरकार द्वारा आरबीआई एक्ट के अनुभाग-7 के प्रयोग की बात कही गई थी, के बाद सरकार और आरबीआई के बीच तनाव बढ़ना शुरू हुआ। ये पत्र तीन मुद्दों-बिजली कंपनियों के कर्ज़ के मामले में छूट देने, बाज़ार में नकदी मुहैया कराने के लिये पूंजी भंडार का इस्तेमाल करने और छोटे तथा मध्यम उपक्रमों को ऋण देने की शर्तों में छूट देने पर लिखे गए थे।

    आरबीआई एक्ट की धारा-7 आरबीआई के प्रबंधन से संबंधित है जिसमें यह प्रावधान है कि भारत सरकार जनहित में समय-समय पर रिज़र्व बैंक को निर्देश जारी कर सकती है।

    धारा 7(1): केंद्र सरकार रिज़र्व बैंक के गर्वनर के साथ विचार-विमर्श के बाद जनहित में समय-समय पर केंद्रीय बैंक को निर्देश जारी कर सकता है।

    धारा 7(2): इस तरह के किसी भी दिशा-निर्देश के बाद बैंक का काम एक केंद्रीय निदेशक मंडल को सौंप दिया जाएगा। यह निदेशक मंडल बैंक की सभी शक्तियों का उपयोग कर सकता है और रिज़र्व बैंक की ओर से किये जाने वाले सभी कार्यों को कर सकता है।

    धारा 7(3): रिज़र्व बैंक के गवर्नर और उनकी अनुपस्थिति में उनकी ओर से नामित डिप्टी गवर्नर की गैर-मौजूदगी में भी केंद्रीय निदेशक मंडल के पास बैंक के सामान्य मामलों और कामकाज के सामान्य अधीक्षण और निर्देशन की शक्तियाँ होंगी। वह उन सभी शक्तियों का इस्तेमाल कर पाएगा, जो कि बैंक को प्राप्त हैं।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में सरकार और आरबीआई का पक्ष स्पष्ट करेंगे-

    सरकार का पक्ष

    • छोटे उद्योगों को ज़्यादा लोन मिल सके इसके लिये आरबीआई को बैंकिंग नियमों में ढील देनी चाहिये।
    • सरकार का मानना है कि आरबीआई सार्वजनिक क्षेत्र के कमज़ोर बैंकों का संचालन सही तरीके से नहीं कर रहा।
    • बाज़ार में नकदी प्रवाह की कमी।
    • आरबीआई द्वारा विद्युत क्षेत्र में भी खराब ऋणों का निपटारा सही तरीके से नहीं किया जा रहा।
    • बिजली कंपनियों को दिवाला प्रक्रिया से बाहर किया जाए।
    • PCA (प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन) कार्रवाई के तहत नियमों में ढील दी जाए ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लघु उद्योगों को ज़्यादा कर्ज़ दे सकें।

    आरबीआई का पक्ष

    • अगर पावर कंपनियों को छूट दी जाती है तो अन्य कंपनियाँ भी ऐसी छूट की मांग कर सकती हैं।
    • PCA के नियमों में ढील देने से स्मॉल इंडस्ट्रीज को लोन देना होगा।
    • इससे एनपीए (Non-performing Assets) का संकट बढ़ेगा।

    निष्कर्ष


    अंत में सारगर्भित, संक्षिप्त एवं संतुलित निष्कर्ष लिखें।

    हस्तक्षेप संबंधी विवाद सदैव ही अर्थव्यवस्था में बहस का विषय रहता है। दोनों पक्षों के द्वारा इसके लिये संतुलित समाधान खोजने की कोशिश की जानी चाहिये। एक ऐसे मंच का निर्माण किया जाए जहाँ भविष्य में राजनीतिक हस्तक्षेप तथा आरबीआई की स्वायत्तता संबंधी मुद्दों और विवादों की चर्चा की जा सके तथा उचित समाधान निकाला जा सके। सरकार की चिंता छोटे एवं मध्यम उद्यमों में सुधार को लेकर है। ऐसे में सरकार को आरबीआई को मानदंडों को बदलने के लिये मजबूर करने की बजाय इस वर्ग के लिये कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने और अन्य नीतियों के निर्माण पर ध्यान देना चाहिये।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2