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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक उन्नति के उद्देश्यों हेतु किया गया ‘आरक्षण का प्रावधान’ वर्तमान में केवल राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति का साधन मात्र बनकर रह गया है। कथन के संदर्भ में अनुच्छेद 340 की महत्ता व इससे संबंधित हालिया विवादों पर चर्चा करें।

    07 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में आरक्षण की नीति का सामान्य परिचय स्पष्ट करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में आरक्षण के प्रावधान के उद्देश्यों का उल्लेख करते हुए इस नीति के रणनीतिक स्वार्थपूर्ति का साधन बन जाने की चर्चा करें साथ ही अनुच्छेद 340 का महत्त्व तथा हालिया मुद्दों को भी लिखें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें। 

    समानता की स्थापना के द्वारा ही उन्नति और विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर संविधान निर्माताओं ने ‘सकारात्मक विभेद’ की नीति को स्वीकार किया। इसी नीति के आधार पर देश में पिछड़े हुए सामाजिक वर्गों के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 16(4) राज्य को समाज के सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों के लिये राज्य की सेवाओं में आरक्षण की अनुमति देता है। इससे समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा। 

    आरक्षण के प्रावधान के उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता हैः

    • ऐतिहासिक रूप से पिछड़े हुए सामाजिक एवं शैक्षिक वर्गों को सामाजिक विकास की मुख्यधारा में सम्मिलित करना। 
    • जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना।
    • सरकारी पदों पर पिछड़े सामाजिक एवं शैक्षिक वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना। 

    आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना था, किंतु आरक्षण प्रदान करने के आधार का गलत फायदा उठाकर संकीर्ण सोच वाले राजनीतिक दलों ने इसे राजनीतिक हितों की पूर्ति का साधन बना लिया है। जाति और धर्म के आधार पर आरक्षण प्रदान करने की नीति ने राजनीतिक दलों को जातियों के आधार पर ध्रुवीकरण करने का अवसर प्रदान किया है, इसलिए सांप्रदायिकता के आधार पर वोट बैंक की राजनीति की जा रही है जिस कारण सामान्य श्रेणी के युवाओं में कुण्ठा, असहमति, हताशा आदि बढ़ रही है। 

    आरक्षण की नीति का राजनीतिक दलों द्वारा दुरुपयोग न किया जाए, इस निमित्त संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रावधान किया गया है। इसके अंतर्गत देश में पिछड़े वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जाँच करने तथा उनके विकास व उन्नति हेतु सुझाव प्राप्त करने के लिये राष्ट्रपति एक पिछड़ा वर्ग आयोग गठित कर सकता है। 

    इस प्रावधान के महत्त्व को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता हैः

    • देश के पिछड़ा वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाना।
    • पिछड़ा वर्ग में भी हाशिये पर स्थित समूहों का पता लगाना।
    • यह सुनिश्चित करना कि आरक्षण का लाभ कुछ उपसमूहों तक ही सीमित न रहे।
    • ऐसी जातियों का पता लगाना जो पिछड़ा वर्ग समूह में आ रही हैं या उससे बाहर निकाली जानी हैं। 

    पिछड़ा वर्ग समूहों में उपवर्गीकरण करने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता में ओबीसी आयोग का गठन किया है। यह पिछड़ा वर्गों में ऐसे समूहों का पता लगाएगा जिनको आरक्षण का लाभ पर्याप्त रूप से नहीं मिल पा रहा है और साथ ही वे समूह जिन तक आरक्षण का लाभ सिमटकर रह गया है। इससे आरक्षण का मूल उद्देश्य अर्थात् सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा।

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