पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं तथा स्थानीय समुदायों की भूमिका की चर्चा कीजिये।
04 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणमहिलाओं का शुरू से ही प्रकृति के साथ निकटतम संबंध रहा है। अपनी संस्कृति, सामाजिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों को देखें तो हम पाते हैं कि महिलाएँ विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों की महिलाएँ हमेशा से पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक रही हैं।
आज भी विभिन्न त्योहारों के अवसर पर अथवा दैनिक क्रियाकलापों में महिलाओं द्वारा पेड़-पौधों, पुष्पों और जानवरों को दिया जाने वाला महत्त्व इसका प्रत्यक्ष उदहारण है। जनजातीय समाजों में भोजन, जल, पशुओं के लिये चारा एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं का संग्रहण करने की ज़िम्मेदारी महिलाओं की ही होती है। अतः प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का दुष्प्रभाव मानव समाज में सबसे ज़्यादा महिलाओं पर ही पड़ता है। दरअसल, महिलाएँ जहाँ एक तरफ प्रकृति की उत्पादनकर्ता और संग्रहणकर्ता हैं तो दूसरी तरफ प्रबंधक की भूमिका भी निभाती रहीं हैं।
अलग-अलग समय पर प्रकृति के संरक्षण के लिये महिलाओं ने चिपको एवं एप्पिको आन्दोलन जैसी कई पहलों का नेतृत्व किया, तो राजस्थान की अमृता देवी वन संरक्षण के लिये अपने प्राण देने से भी नहीं हिचकिचाईं। पर्यावरण संरक्षण में योगदान के लिये मेधा पाटेकर (अंतर्राष्ट्रीय ग्रीन रिबन पुरष्कार) और वंदना शिवा (राइट लिवली हुड) को अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, तो अमृता देवी के नाम पर भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिये पुरस्कार (अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार) की शुरुआत की। उत्तराखंड के चमोली ज़िले की महिलाओं ने जंगलों को काटने से बचाने के क्रम में सरकार के निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि “जंगल हमारा मायका है हम इसे उजड़ने नहीं देंगे”।
दरअसल, जनजातियाँ एवं अन्य स्थानीय समुदाय पर्यावरण विशेषकर वनों को अपना आवास और अपनी धरोहर मानते हैं और इसी रूप में उनका संरक्षण करते हैं। पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं तथा स्थानीय समुदायों की महत्त्वपूर्ण भागीदारी को देखते हुए भारत सरकार ने 1980 के दशक में “संयुक्त वन प्रबंधन” जैसी पहल की शुरुआत की, जिसमें महिलाओं एवं स्थानीय समुदायों दोनों को ही स्थान दिया गया ताकि बेहतर तरीके से वनों की रक्षा और प्रबंधन का कार्य किया जा सके।
पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं तथा स्थानीय समुदायों की इस प्रकार की भूमिका को महत्त्व देकर वनों का संरक्षण तो किया ही जा सकता है साथ ही ऐसा संरक्षण पर्यावरणीय दृष्टि से निर्वहन योग्य भी होगा।