द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) से आप क्या समझते हैं? हाल ही में भारत ने 58 देशों के साथ अपनी सभी पुरानी द्विपक्षीय निवेश संधियों को समाप्त कर दिया है। क्या यह निर्णय भारत को फिर से 1991 से पहले की परिस्थितियों में पहुँचा देगा? परीक्षण कीजिये।
07 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाद्विपक्षीय निवेश समझौते से तात्पर्य एक ऐसे समझौते से है जो उन नियमों एवं शर्तों को तय करता है, जिनके तहत किसी एक देश के नागरिक व कंपनियाँ किसी दूसरे देश में निजी निवेश करते हैं। ऐसी अधिकतर संधियों में विवादों की स्थिति में कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ मध्यस्थता का कार्य करती हैं।
प्रायः यह देखा गया है कि द्विपक्षीय संधियों में विवाद के निपटान की प्रक्रिया में मध्यस्थ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा भारत जैसे विकासशील देशों के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जाता रहा है। इससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के चलते ही 1 अप्रैल 2017 से भारत ने 58 देशों के साथ अपनी पुरानी द्विपक्षीय निवेश संधियों को निरस्त कर दिया है। भविष्य में ऐसे समझौतों के लिये सरकार ने पुरानी बीआईटी के नियमों में बदलाव करते हुए नई शर्तों को शामिल किया है।
भारत के इस निर्णय से विदेशी निवेशक और विकसित देश दोनों अपने निवेश की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उनकी असुरक्षा की भावना से भारत में निवेश के प्रभावित होने की प्रबल संभावना है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नई बीआईटी निवेशकों को संतुष्ट नहीं कर पाती है तो निवेश का संकट उत्पन्न हो सकता है, जो भारत को पुनः 1991 से पहले की तरह बन्द अर्थव्यवस्था की परिस्थितियों की ओर ले जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि 1991 से पहले भारत एक बन्द अर्थव्यवस्था थी और तब तक भारत ने किसी भी बीआईटी पर हस्ताक्षर नहीं किये थे क्योंकि इस समय तक भारत विदेशी निवेश को महत्त्वपूर्ण नहीं मानता था। परन्तु, वर्तमान की इन चुनौतियों व निवेशकों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने निवेशकों के विश्वास को मजबूती देने के लिये ‘निवेशक राज्य विवाद निपटान (आईएसडीएस)’ के प्रावधान को नई बीआईटी में सम्मिलित किया है।
नए बीआईटी में भारत सरकार द्वारा निवेशक के अधिकारों और सरकारी दायित्वों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों और व्यवहारों की रोशनी में भारत में विदेशी निवेशकों और विदेश में भारतीय निवेशकों को समुचित सुरक्षा प्रदान की गई है। सरकार ‘मेक इन इंण्डिया’ जैसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिये प्रतिबद्ध है जिसके लिये निवेश की अत्यधिक आवश्यकता भी है। ऐसी स्थिति में सरकार का प्रयास है कि नई बीआईटी भी निवेशकों को आकर्षित करे। अतः सरकार के इस निर्णय में कुछ चुनौतियाँ तो हो सकती हैं परंतु यह कहना सही नहीं होगा कि भारत फिर से 1991 से पहले की परिस्थितियों में पहुँच जायेगा।